मृतक कर्मचारी की पत्नी को ग्रेच्युटी देने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचना योगी सरकार को पड़ा भारी‚ कोर्ट ने लगाया जुर्माना

आँखों देखी
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सुप्रीम कोर्ट

 

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उत्तर प्रदेश सरकार (Uttar Pradesh Government) को इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) के आदेश को सुप्रीमो कोर्ट में चुनौती देना महंगा पड़ा है। उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने जस्टिस एमआर शाह (Justice MR Shah) और जस्टिस बीवी नागरत्ना (Justice BV Nagarathna) की खंडपीठ ने यूपी सरकार पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगा दिया है।

दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को सर्विस के दौरान मरने वाले एक कर्मचारी की पत्नी को ग्रेच्युटी देने का निर्देश दिया था। यूपी सरकार इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गयी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने की राज्य सरकार की निंदा

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की खंडपीठ ने ऐसे फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के लिए राज्य सरकार पर आपत्ति जताई। कोर्ट का मानना है कि राज्य ने ऐसा पीड़ित व्यक्ति को मुआवजे की राशि से वंचित करने के लिए किया।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “हम शीर्ष अदालत के समक्ष इस तरह के मामलों को दायर करने वाले राज्य के चलन की निंदा करते हैं। अपीलकर्ता को चार सप्ताह के भीतर मृत कर्मचारी की पत्नी को 50,000 रुपये का जुर्माना देने होगा। राज्य की अपील को खारिज किया जाता है।”

क्या है पूरा मामला?

प्रियंका के पति ने 2 जुलाई, 2001 को लेक्चरर के रूप में काम शुरू किया था। सर्विस के दौरान ही 11 अगस्त, 2009 को उनकी मृत्यु हो गई। प्रियंका ने पति के ग्रेच्युटी के लिए आवेदन किया, जिसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि प्रतिवादी के पति ने सेवा में रहते हुए 60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्ति का विकल्प नहीं चुना था।

इस फैसले को चुनौती देते हुए प्रियंका इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंची थी। कोर्ट ने पत्नी की दलील को स्वीकार किया और ग्रेच्युटी देने का निर्देश जारी किया। हाई कोर्ट के इस रुख से असहमत राज्य सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी।

तर्क-वितर्क

राज्य ने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय ने इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया कि कर्मचारी ने सेवानिवृत्ति के विकल्प को नहीं चुना था इसलिए मृत कर्मचारी की प्रतिवादी-पत्नी को मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति ग्रेच्युटी का लाभ स्वीकृत नहीं किया जा सकता है। सरकारी आदेशों के अनुसार मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति ग्रेच्युटी का लाभ प्राप्त करने के लिए 60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होने के विकल्प का प्रयोग अनिवार्य था।

दूसरी ओर, प्रतिवादी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि 16 सितंबर, 2009 के सरकारी आदेश के अनुसार, प्रियंका के पति 60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होने के विकल्प का प्रयोग करने के हकदार थें। यह विकल्प 1 जुलाई, 2010 तक खुला था लेकिन उससे पहले ही 11 अगस्त, 2009 को उनकी मौत हो गयी।

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