जनपद आगरा में इन दिनों पड़ रही कड़ाके की सर्दी ने लोगों को बेहाल कर दिया है। इस समय चल शीतलहर और गलन के कारण लोगों के हाथ-पैर सुन्न हो रहे हैं। वही सर्दी के प्रकोप से जीव-जंतु भी बेहाल हैं। शीतलहर से जान बचाने के लिए घड़ियाल भी चंबल नदी के गहरे पानी के गड्ढों में छिपे रहते है । घड़ियालो ने इन दिनों शिकार करना भी छोड़ दिया है । सिर्फ सांस लेने के लिए घंटों बाद नदी में पानी की सतह पर आते हैं।
आपको बता दे चंबल के घड़ियालों पर अध्ययन कर रहे मद्रास क्रोकोडाइल बैंक ट्रस्ट के जैलाबुद्दीन ने बताया कि ठंड से बचने के लिए आजकल घड़ियाल चंबल नदी के गहराई वाले इलाके में बैठ गए हैं।वही घड़ियाल का मूवमेंट न होने की वजह से भोजन की जरूरत नहीं होती। इस समय घड़ियाल बसा पिंडकों में जमा भोजन से जिंदा रहते हैं। वही उन्होंने बताया कि घड़ियाल कई घंटों तक बिना सांस लिए पानी में रह सकते हैं। यही कारण चंबल नदी की सतह पर घड़ियाल बहुत कम ही आते हैं।
वही बाह के रेंजर ने बताया कि राजस्थान से सटे रेहा से लेकर इटावा से लगे उदयपुर खुर्द तक वन विभाग की टीमें पेट्रोलिंग कर घड़ियालों की गतिविधियों पर नजर रखे हैं। इस समय कोई भी बीमार या अस्वस्थ घड़ियाल नहीं मिला है।
सर्दी से सांप और कछुए की दिनचर्या भी हो जाती है प्रभावित
जैलाबुद्दीन के बताये अनुसार घड़ियाल, मगरमच्छ की तरह ही ठंड से सांप और कछुए की दिनचर्या प्रभावित होती है। सर्दी के दिनों में सांप और कछुए भी शिकार के लिए बाहर नहीं निकलते हैं। ये भी बिलों में छिप जाते हैं।
करीब आज से 15 साल पहले हुई थी 100 से ज्यादा घड़ियालों की मौत
चंबल सेंक्चुअरी (Chambal Sanctuary) में 2008 में सर्दी के दिनों में 100 से ज्यादा घड़ियालों की मौत हुई थी। मौत की वजह घड़ियालों के लिवर कैडमियम से खराब होने की बात सामने आई थी। इसके लिए यमुना से चंबल में आई कबई मछली को जिम्मेदार माना गया था। तब से हर साल सर्दी में घड़ियालों के मूवमेंट पर वन विभाग नजर रख रहा है।
आपको बता दे दुनियाभर में घड़ियालों की प्रजाति संकटग्रस्त जीवों की सूची में है। घड़ियालों की 80 फीसदी आबादी चंबल नदी में मौजूद है। चंबल नदी में वर्ष 1979 से घड़ियालों का संरक्षण हो रहा है। वही हर साल इनकी गणना होती है।