कैराना मे गत रात्रि नगर के मौहल्ला अंसारीयान स्थित जै़दी हाउस पर कैराना के आलमी शोहरत याफ़्ता शायर स्व 0 मुज़फ्फर रज़मी की याद में 12वीं बरसी पर एक शानदार महफ़िल ए मुशायरे का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता नगर के मशहूर शायर अल्हाज कौसर ज़ैदी ने की।एडीएम शामली संतोष कुमार सिंह मुख्य अतिथि रहे।वहीं देवबंद से आये उस्ताद शायर जनाब शम्स देवबंदी मेहमान ए खुसुसी रहे,मुशायरे का सफ़ल संचालन अंसार अहमद सिद्दीकी ने किया।महफ़िल ए मुशायरे का आगाज कारी मुज़म्मिल की तिलावत ए कुरआन से तथा युवा शायर अमजद खान की नाते ए पाक से हुआ।
पेश हैं मुशायरे में पढ़े गए पसंदीदा शेर:-देवबंद से आये शम्स देवबंदी ने हालात पर अपनी शायरी की -उन्होंने अपना शेर कुछ यूं पढ़ा,
अगर महशर ना हो बरपा तो घर भी घर नहीं लगता,हम सिरफ़िरे हैं सर फिरों को डर नहीं लगता।देहरादून से आये बुजुर्ग शायर जनाब इक़बाल आज़र ने पढ़ा,मैं जुगनू हूं मगर ये अज़्म लेकर जगमगाता हूं,अंधेरी रात का मबलूस मुझको चीर देना है।देहली से आये शायर जनाब अरशद नदीम ने कहा,अदलो इंसाफ़ का यूं ख़ून भी हो सकता है,क़त्ल कानून से क़ानून भी हो सकता है।रईस मुज़फ्फरनगरी ने अपनी शायरी से वाह देहली से आये शायर जनाब अरशद नदीम ने कहा,अदलो इंसाफ़ का यूं ख़ून भी हो सकता है,क़त्ल कानून से क़ानून भी हो सकता है।रईस मुज़फ्फरनगरी ने अपनी शायरी से वाह वाही हासिल कर ते हुए अपना शेर कुछ यूं पढ़ा,मैं फ़ूल हूं पत्ती हूं शजर हूं के हवा हूं,तनहाई के जंगल में खड़ा सोच रहा हूं।देहरादून के शायर कवि परमवीर कौशिक ने कहा,वक्त का तकाज़ा है ख़ुद को ही बदल लीजिए,अब वफ़ा मोहब्बत में लाज़मी नहीं होती।शामली के अपर जिलाधिकारी संतोष कुमार सिंह ने कहा कि,मेरी ज़िद को एक बार दिल लगी कह दो,नज़र किसी की भी हो मगर सुरूर तेरा हो।शामली से पधारे कवि अनुराग शर्मा ने कहा,बे हयाई का देखो चलन हो गया,
आज मूल्यों का सारे पतन हो गया,
सूजता कुछ नहीं बस निराशा बड़ी,
आंख का पानी देखो तपन हो गया।उस्ताद शायर जनाब कौसर ज़ैदी ने अपनी शायरी से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया उन्होंने ने कहा कि,बे ज़मीर लोगों के मशवरों की ज़द में हैं,हम हैं आईना लेकिन पत्थरों की ज़द में हैं।वहीं मास्टर अतीक शाद ने कहा,हर एक लबों की शान में उर्दू ज़बान हूं,गोया के अदब की जान में उर्दू ज़बान हूं।सफ़ल संचालन कर रहे जनाब अंसार अहमद सिद्दीकी ने अपना शेर कुछ यूं पढ़ा,वो आसतीं ना रही जिसमें सांप पलते थे,सुना है अब तो कमीज़ो में नाग पलते हैं।नगर के प्रसिद्ध शायर सलीम अख्तर फ़ारुकी ने अपनी शायरी से महफ़िल को कामयाब बनाने में योगदान देते हुए अपना शेर कुछ यूं पढ़ा,ख़ार जो बिछाती है रास्ते में उर्दू के,हो सके अगर तुम से वो ज़बां बदल दीजिए।पुरकाज़ी के मूवी बनाने वाले चल मसूरी चलें के शायर जनाब अमजद खान अमजद ने अपना शेर कुछ यूं पढ़ा,चलना मुश्किल कर देती मुफ़लिस का,ख़ाली जेब भी कितनी भारी होती है।वहीं कारी मुज़म्मिल ने भी अपना शेर कुछ यूं पढ़ा,दुनियादारी में भला दोस्तों क्या रखा है,अपने अल्लाह को मनाओ तो कोई बात बने।इसके अलावा यावर ज़ैदी, ज़हीर अहमद ज़हीर आदि ने भी अपनी शायरी पेश की। मुशायरे महफ़िल को कामयाब बनाने में हसीन सिद्दीकी, जावेद रज़ा ज़ैदी, मौहम्मद अली, सलीम फरीदी, आरिफ़ फरीदी,नातिक अली, अफ़ज़ल रज़ा, शब्बू भाई का महत्वपूर्ण योगदान रहा। वहीं मिडिया कवरेज करने में वरिष्ठ पत्रकार फ़िरोज़ ख़ान ने अहम् भूमिका निभाई।वहीं अंत में एडीएम संतोष कुमार सिंह व कौसर ज़ैदी को अंजुमन ख़ुलूसो अदब कैराना की ओर से शील्ड व शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया।वाही हासिल कर ते हुए अपना शेर कुछ यूं पढ़ा,मैं फ़ूल हूं पत्ती हूं शजर हूं के हवा हूं,तनहाई के जंगल में खड़ा सोच रहा हूं।देहरादून के शायर कवि परमवीर कौशिक ने कहा,वक्त का तकाज़ा है ख़ुद को ही बदल लीजिए,अब वफ़ा मौहबबत में लाज़मी नहीं होती।शामली के अपर जिलाधिकारी संतोष कुमार सिंह ने कहा कि,मेरी ज़िद को एक बार दिल लगी कह दो,नज़र किसी की भी हो मगर सुरूर तेरा हो।शामली से पधारे कवि अनुराग शर्मा ने कहा,बे हयाई का देखो चलन हो गया,
आज मूल्यों का सारे पतन हो गया,
सूजता कुछ नहीं बस निराशा बड़ी,
आंख का पानी देखो तपन हो गया।उस्ताद शायर जनाब कौसर ज़ैदी ने अपनी शायरी से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया उन्होंने ने कहा कि,बे ज़मीर लोगों के मशवरों की ज़द में हैं,हम हैं आईना लेकिन पत्थरों की ज़द में हैं।वहीं मास्टर अतीक शाद ने कहा,
हर एक लबों की शान में उर्दू ज़बान हूं,
गोया के अदब की जान में उर्दू ज़बान हूं।सफ़ल संचालन कर रहे जनाब अंसार अहमद सिद्दीकी ने अपना शेर कुछ यूं पढ़ा,वो आसतीं ना रही जिसमें सांप पलते थे,सुना है अब तो कमीज़ो में नाग पलते हैं।नगर के प्रसिद्ध शायर सलीम अख्तर फ़ारुकी ने अपनी शायरी से महफ़िल को कामयाब बनाने में योगदान देते हुए अपना शेर कुछ यूं पढ़ा,ख़ार जो बिछाती है रास्ते में उर्दू के,हो सके अगर तुम से वो ज़बां बदल दीजिए।पुरकाज़ी के मूवी बनाने वाले चल मसूरी चलें के शायर जनाब अमजद खान अमजद ने अपना शेर कुछ यूं पढ़ा,चलना मुश्किल कर देती मुफ़लिस का,ख़ाली जेब भी कितनी भारी होती है।वहीं कारी मुज़म्मिल ने भी अपना शेर कुछ यूं पढ़ा,दुनियादारी में भला दोस्तों क्या रखा है,अपने अल्लाह को मनाओ तो कोई बात बने। इसके अलावा यावर ज़ैदी, ज़हीर अहमद ज़हीर आदि ने भी अपनी शायरी पेश की। मुशायरे महफ़िल को कामयाब बनाने में हसीन सिद्दीकी, जावेद रज़ा ज़ैदी, मौहम्मद अली, सलीम फरीदी, आरिफ़ फरीदी,नातिक अली, अफ़ज़ल रज़ा, शब्बू भाई का महत्वपूर्ण योगदान रहा। वहीं मिडिया कवरेज करने में फ़िरोज़ ख़ान ने अहम् भूमिका निभाई।वहीं अंत में एडीएम संतोष कुमार सिंह व कौसर ज़ैदी को अंजुमन ख़ुलूसो अदब कैराना की ओर से शील्ड व शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया।