लखनऊ: लखनऊ स्थित माध्यमिक शिक्षा निदेशालय (शिविर कार्यालय) के प्रांगण में पिछले 22 दिनों से गहमागहमी है। ये माहौल इसलिए क्योंकि विभिन्न जिलों से आए सैकड़ों तदर्थ शिक्षक(एडहॉक टीचर) अपने और अपने परिवार की जान बचाने की गुहार लेकर पहले धरना फिर उपवास और अब आमरण अनशन पर बैठ गए हैं।
एडहॉक शिक्षक लंबे समय से माध्यमिक विद्यालयों में पढ़ा रहे हैं। मंत्री, उपमुख्यमंत्री, विधायक, एमएलसी, माध्यमिक शिक्षा विभाग के निदेशक आदि सब जगह अपनी फरियाद रखकर हार चुके इन तदर्थ शिक्षकों ने अपनी आवाज़ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक पहुंचाने के लिए अनूठा तरीका निकाला है। अपने आंदोलन को याचना कार्यक्रम का नाम देते हुए मंच पर जहां बजरंगबली की तस्वीर रखी है वहीं उसी तस्वीर के बगल में मुख्यमंत्री की तस्वीर भी रखी है। पर ऐसा क्यों? इस सवाल के जवाब में वे बेबस भाव से कहते है कई बार मुख्यमंत्री से मिलने की कोशिश हुई लेकिन सफलता नहीं मिली, शायद बजरंगबली के माध्यम से ही उनकी आवाज़ मुख्यमंत्री तक पहुंच जाए।
भले ही किसी के लिए यह तरीका हास्यास्पद हो सकता है लेकिन इन तदर्थ शिक्षकों की याचना का तरीका यह दर्शाता है कि ये लोग वेदना की उस सीमा तक पहुंच गए हैं जहां फ़रियाद का कोई भी रास्ता ये अपनाने को तैयार हैं। तदर्थ शिक्षकों का कहना है कि हनुमान पाठ पूजन के द्वारा वे यह प्रार्थना करेंगे कि संबंधित अधिकारियों द्वारा मुख्यमंत्री को जो गुमराह किया गया है, उस बात को सीएम के दिमाग से हटाकर जो सर्वोच्च न्यायलय और उच्च न्यायालय का आदेश है उसे मानते हुए मानवीय संवेदनाओं के आधार पर हम सभी का शीघ्र से वेतन निर्गत हो सके जिससे उनका और उनके परिवार का जीवन सुचारू रूप से चल सके।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की ग़लत व्याख्या कर रहे अधिकारी
आंदोलनकारी तदर्थ शिक्षकों का आरोप है कि अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के आदेश की गलत व्याख्या करके जानबूझकर उनका वेतन रोके हुए है। उनके मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि तदर्थवाद समाप्त किया जाए और भविष्य में उसकी पुनरावृत्ति न हो, जबकि कोर्ट का यह कहना कहीं से भी यह नहीं दर्शाता कि पहले से सेवा दे रहे तदर्थ शिक्षकों का वेतन रोक दिया जाए या उनकी सेवा समाप्त कर दी जाए। कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति न हो।
शिक्षकों का दावा है कि सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कहा है कि 25 वर्षों से तैनात शिक्षकों को लेकर अगर विभाग ने कोई नीतिगत फैसला नहीं लिया है तो इसके लिए विभाग भी जिम्मेदार है। इसके बाद भी माध्यमिक शिक्षा विभाग की ओर से बार-बार अदालत में काउंटर दाखिल कर तदर्थ शिक्षकों को परेशान किया जा रहा है। तदर्थ शिक्षकों की ओर से बताया गया है कि उच्च न्यायालय तक का आदेश है कि जब तक आयोग द्वारा चयनित अभ्यर्थी संबंधित पद पर नहीं आ जाते तब तक तदर्थ शिक्षकों को वेतन दिया जाता रहे। शिक्षकों का कहना है कि वह अध्यापन से लेकर मूल्यांकन आदि में सहयोग करते आ रहे हैं। वेतन न मिलने से परिवार का भरण-पोषण और बच्चों की पढ़ाई बुरी तरह से बाधित हो रही है।
धरने पर बैठे ये तदर्थ शिक्षक कोई पांच, सात सालों से नहीं बल्कि लंबे समय से प्रदेश के अशासकीय, यानी सरकार द्वारा सहायता प्राप्त स्कूलों में सेवा दे रहे हैं जिन्हें ऐडेड स्कूल भी कहा जाता है। मौजूदा समय में प्रदेश के 32 जिलों में तदर्थ शिक्षक अशासकीय माध्यमिक विद्यालयों में पढ़ा रहे हैं। उनमें से 18 जिलों के तैनात करीब 15 सौ से अधिक तदर्थ शिक्षकों को बीते 12 महीने से वेतन का भुगतान रुका हुआ है। इन तदर्थ शिक्षकों में कोई 15 तो कोई 25 सालों से अपनी सेवा दे रहे हैं तो कोई इससे भी ज्यादा समय से पढ़ा रहे हैं।
अधिकारी कोर्ट का भी फैसला मानने को तैयार नहीं
माध्यमिक तदर्थ शिक्षक समिति संयोजक राजमणि सिंह कहते हैं एक साल से वेतन न मिलने के कारण प्रदेश के करीब दो हजार तदर्थ शिक्षक बदहाली के कगार तक पहुंच गए हैं इस बाबत निदेशक से मिलकर शिक्षकों ने साफ कहा है कि या तो उन्हें सल्फास दे दिया जाए या दो लाईन लिखकर उनकी सेवा समाप्त कर दी जाए लेकिन बीच मझधार में न छोड़ा जाए। वे कहते हैं जब हाई कोर्ट ने साफ कहा है कि जब तक चयनित अभ्यर्थी नहीं आ जाते तब तक तदर्थ शिक्षकों को वेतन दिया जाता रहे तो यहां अधिकारी कोर्ट का भी फैसला मानने को तैयार नहीं।
राजमणि सिंह भावुक स्वर में कहते हैं तदर्थ शिक्षकों ने तब उन स्कूलों को बचाने का काम किया जब विज्ञान, गणित और अन्य विषयों के अध्यापक रिटायर हो रहे थे, शिक्षकों के अभाव में स्कूलों में ताले लगने की नौबत आ गई थी, प्रबंधन वहां धान, गेहूं की खेती कराना चाह रहा था तब तदर्थ शिक्षकों ने ही अपनी सेवा देकर तब स्कूल और छात्रों का भविष्य सुरक्षित बनाया। वे सवाल उठाते हुए कहते हैं, कोई तदर्थ शिक्षक 15 तो कोई 20 सालों से पढ़ाने का काम कर रहा है और कोई उससे भी अधिक समय से अध्यापन से जुड़ा है, तो इसमें क्या शिक्षक ही दोषी है।
अगर कोई योग्य अभ्यर्थी पढ़ाने के लिए नहीं मिल पाया तो इसमें तदर्थ शिक्षक का क्या अपराध वो तो निस्वार्थ भाव से अपनी सेवा दे ही रहा था। वे कहते हैं तदर्थ शिक्षक नहीं रखने थे तो एक तय समय सीमा के अंदर सेवा समाप्त कर दी जाती और किसी चयनित अभ्यर्थी को वह पद दे दिया जाता। आज जब हम तदर्थ शिक्षक दो, ढाई दशकों से ईमानदारी से अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं तो उसका फल यह मिल रहा है कि हमारा वेतन रोक कर हमें पाई पाई का मोहताज बना दिया जा रहा है।
वर्षों से सेवा दे रहे शिक्षक
राजमणि ने बताया कि खुद उनकी नियुक्ति 2003 की है यानी बीस वर्ष हो गए पढ़ाते हुए। वे लोग कभी इस हालात में भी पहुंच जायेंगे उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था। वे कहते हैं ऊपर से तो आदेश है हमारा वेतन देने का लेकिन कुछ अधिकारी ही उनका वेतन दबाए बैठे हैं। इसलिए वे मुख्यमंत्री से प्रार्थना कर रहे हैं कि वे इस पूरे मसले को देखें और ये समझें कि वो कौन अधिकारी हैं जो उन्हें बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। राजमणि कहते हैं उन्हें पूरा विश्वास है जिस दिन वे लोग सीधे मुख्यमंत्री से मिलेंगे उस दिन उनकी समस्या का समाधान निश्चित है लेकिन हालात यह है कि जानबूझकर उन्हें मुख्यमंत्री से मिलने नहीं दिया जा रहा।
संगठन के प्रांतीय प्रवक्ता राजेश त्रिपाठी कहते हैं, हम तदर्थ शिक्षक मंत्री, विधायक, एमएलसी, उपमुख्यमंत्री, निदेशक, सब की चौखट पर जा चुके हैं। इन सबके द्वारा आश्वासन तो भरपूर मिला लेकिन बात केवल आश्वासन तक रह गई। वे कहते हैं हम मंच के माध्यम से यह चुनौती देना चाहते हैं कि अधिकारी अपना वकील सामने ले आयें और हम शिक्षक अपना वकील या तदर्थ शिक्षक स्वयं अपने मामले में ज़िरह कर ले और अधिकारी यह साबित कर ले कि हमारी नियुक्ति अवैध है यानी नियम विरुद्ध है तो हमें तत्काल प्रभाव से नौकरी से निकाल दें। हम उफ तक नहीं करेंगे लेकिन यदि हमारी नियुक्ति वैध है तो जो अधिकारी पिछले एक साल से हमारा वेतन रोक कर हमारा मानसिक और आर्थिक शोषण कर रहे हैं उनको सज़ा दी जाए।
शिक्षक की बीमार बच्ची बिना इलाज के मर गई
राजेश त्रिपाठी कहते हैं हालात यहां तक पहुंच गए कि तदर्थ शिक्षक अपने बच्चों की स्कूल की फीस नहीं भर पा रहे, बूढ़े मां बाप का इलाज नहीं करा पा रहे। उन्होंने बताया कि एक तदर्थ शिक्षक की बीमार बच्ची बिना इलाज के मर गई जो हम सब के लिए बेहद पीड़ादायक है।
माध्यमिक तदर्थ शिक्षक संघर्ष समिति उत्तर प्रदेश के प्रभात कुमार त्रिपाठी का कहना है कि ‘विभाग ने उन्हें लगातार 22 वर्षों तक नियमित वेतन और दूसरे भुगतान किए हैं, लेकिन बीते साल मई से विभाग में तदर्थ शिक्षकों के वेतन को रोक दिया है। उन्होंने बताया कि साल 1993 में आयोग के भंग होने के कारण अशासकीय विद्यालयों में प्रबंध तंत्र द्वारा शिक्षकों का चयन किया गया, जिन्हें बाद में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर रेगुलर शिक्षक की तरह ही वेतन व दूसरे भत्ते देने का आदेश दिया गया था। इसके बाद से लगातार 22 वर्षों तक सभी तदर्थ शिक्षकों को वेतन मिलता आया है। उन्होंने बताया कि मौजूदा समय में प्रदेश के32 जिलों में तदर्थ शिक्षकों की तैनाती है। इसमें से 14 जिलों में जिला विद्यालय निरीक्षक तदर्थ शिक्षकों का वेतन जारी कर रहे हैं, जबकि 18 जिलों में तैनात तदर्थ शिक्षकों को बीते 12 महीने से वेतन नहीं दिया गया है।
उन्होंने बताया कि बीते साल मई में तत्कालीन प्रमुख सचिव मौखिक ही तदर्थ शिक्षकों के वेतन को रोकने का आदेश दिया था। इसका न कोई लिखित आदेश जारी हुआ है और न ही विभाग के अधिकारियों को इसके बारे में कोई जानकारी है। इसके बाद भी प्रदेश के जिन32 जिलों में तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति हुई है, उनमें से 18 जिलों के तैनात करीब 15 सौ से अधिक तदर्थ शिक्षकों को बीते 12 महीने से वेतन का भुगतान रुका हुआ है। उन्होंने बताया कि इस मामले को लेकर विधानसभा तक में सवाल उठाया जा चुका है। इसके बाद भी तदर्थ शिक्षकों के वेतन भुगतान में लगातार देरी की जा रही है।
सचमुच स्थिति बेहद चिंताजनक है। जिस परिवार में एक साल से नियमित वेतन न आ रहा हो उसकी आर्थिक और मानसिक स्थिति का अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है। आज यहां सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि क्या इन शिक्षकों का कसूर है कि यह लंबे समय से तदर्थ यानी एडहॉक स्तर पर सेवा दे रहे हैं। जब इनकी जरूरत नहीं थी तो एक तय सीमा के तहत चयनित अभ्यर्थी लाकर इनको सेवा मुक्त कर दिया जाता पर ऐसा हुआ नहीं। हर कोई आकर इनको आश्वासन दे रहा है लेकिन हालात यहां तक पहुंच गये हैं कि अब ये आश्वासन भी इनकी पीड़ा को कम नहीं कर पा रहे। अब ये शिक्षक आमरण अनशन पर बैठ गए हैं। इन्होंने ठान लिया है कि जब तक इनके साथ न्याय नहीं होगा ये किसी भी आश्वासन पर अपना आंदोलन खत्म नहीं करेंगे।
रिपोर्ट साभार- न्यूज क्लिक