वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे का आरोप‚ सरकार की मदद करते हैं जज‚ बदले में पाते हैं पुरस्कार

आँखों देखी
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वकील दुष्यंत दवे
वकील दुष्यंत दवे

New delhi: सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने आरोप लगाया है कि न्यायाधीश सरकार की मदद करते हैं और बदले में इनाम पाते हैं। दवे कोच्चि में आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। उनसे पूछा गया कि सेवानिवृत्ति के बाद सार्वजनिक पद ग्रहण करने वाले न्यायाधीशों पर आपकी राय है? इसके जवाब उन्हाेने कहा कि, “मेरा मानना है कि न्यायाधीशों को रिटायरमेंट के बाद पद ग्रहण करने पर रोक होनी चाहिए। जज सरकार को फायदा पहुंचाते हैं। इसके बदले में उन्हें बड़ी मदद दी जाती है। पुरस्कृत किया जाता है। जस्टिस नजीर को राज्यपाल बनाया जाने का मामला ऐसा ही है।”

वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने यह बात ‘एर्नाकुलम गवर्नमेंट लॉ कॉलेज ओल्ड स्टूडेंट्स एंड टीचर्स एसोसिएशन’ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में ‘Basic Structure Of Indian Constitution And The Present Day Challenges’ विषय पर बातचीत करते हुए कही।

‘यौन उत्पीड़न के आरोपों को छिपाने के लिए सरकार के पक्ष में फैसला’

दुष्यंत दवे से पूछा गया कि क्या उन्हें नहीं लगता कि पिछले कुछ वर्षों में न्यायपालिका ने हमें निराश किया है? इसके जवाब में दवे ने कहा सीजेआई गोगोई के कार्यकाल में राफेल, अयोध्या, सीबीआई समेत कई मामलों में सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया गया। ऐसा यौन उत्पीड़न के आरोपों को छिपाने के लिए किया गया। इससे नागरिक काफी प्रभावित हुए हैं। CJI गोगोई, बोबडे, रमना के शासन ने निराश किया। बता दें कि भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर मीटू मूवमेंट के दौरान यौन उत्पीड़न का आरोप लगा था।

‘एक निश्चित वैचारिक झुकाव वाले जजों को लाया जा रहा है’

दुष्यंत दवे से अगला सवाल कॉलेजियम सिस्टम पर पूछा गया। उनसे सवाल किया गया कि आप कॉलेजियम सिस्टम के पक्ष में नहीं हैं। न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए किस प्रकार की व्यवस्था स्थापित की जा सकती है?

दवे ने कहा, “आज के भारत में इस सवाल का जवाब मुश्किल है। हमने अपना नैतिक फाइबर खो दिया है। ऐसे लोगों को पावर में लाना मुश्किल है जो वास्तव में स्वतंत्र हैं। आज जिस तरह के न्यायाधीशों का चयन किया जा रहा है, वे एक निश्चित वैचारिक झुकाव वाले हैं। कॉलेजियम के सदस्य स्वयं कुछ राजनीतिक विचारधाराओं से प्रभावित होते हैं।”

ज्यूडिशियल एक्टिविज्म के आरोप पर दवे का जवाब

अगला सवाल न्यायापालिका की आलोचना से जुड़ा था। दुष्यंत दवे से पूछा गया, “आजकल जब न्यायपालिका किसी मामले में हस्तक्षेप करती है, तो ज्यूडिशियल एक्टिविज्म की बात कह उसकी आलोचना की जाती है। इसका मुकाबला करने के लिए क्या किया जा सकता है?”

जवाब में दवे ने कहा, “राजनीतिक वर्ग न्यायपालिका से नफरत करता है। उदाहरण के लिए विशाखा फैसले को लें, इसने कार्यालयों में महिलाओं के उत्पीड़न को संबोधित किया। संसद तब तक कोई कानून पारित नहीं कर सकती थी। मीडिया भी खामोश है। लेकिन उन्हें रहने दो। मुझे विश्वास है कि न्यायपालिका अच्छा काम करती रहेगी।”

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