मेरठ: माछरा में महिला ने 5 साल बाद दूसरी बार दिया विचित्र बच्चे को जन्म

Manoj Kumar
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मेरठ: माछरा सीएचसी में गांव कासमपुर स्वामीपुरा निवासी महिला ने बीती रात करीब डेढ़ बजे एक विचित्र बच्चे को जन्म दिया। बच्चे के चेहरे पर आंख एवं नाक के महज निशान भर हैं। बच्चे की त्वचा भी जगह-जगह फटी हुई है। उसके हाथों एवं पांवों की उंगली भी नहीं हैं। लगभग 5 साल पहले भी इस महिला ने ऐसी ही एक विचित्र बच्ची को जन्म दिया था। इस समय ग्रामीण उसको देवी का रूप मानकर पूजा अर्चना करते हुए चढ़ावा चढ़ाने लगे थे। हालांकि कुछ बाद ही उस बच्ची की मौत हो गई थी।

2019 में जन्मी बच्ची का फोटो

जानकारी के अनुसार, माछरा ब्लॉक क्षेत्र के कासमपुर स्वामीपुरा निवासी सरदार गोविंद पुत्र करन सिंह ने बताया कि उसकी पत्नी जयकौर को शनिवार रात प्रसव पीड़ा के चलते सीएचसी माछरा में भर्ती कराया था। वहां जयकौर ने एक बच्चे को जन्म दिया। उसे देख चिकित्सक एवं नर्स हैरत में पड़ गए। बच्चे के चेहरे पर आंख एवं नाक के महज निशान भर हैं और उसकी त्वचा भी जगह-जगह फटी हुई है। उसके हाथों एवं पांवों की उंगली भी नहीं हैं।

परिजनों ने बताया कि 27 दिसंबर 2019 को भी महिला ने बिल्कुल ऐसे ही विचित्र बच्चे को जन्म दिया था। जिसे ग्रामीण देवी का रूप मानकर पूजने लगे थे। लेकिन कुछ बाद ही उसकी मृत्यु हो गई थी। उसके बाद जयकौर ने एक अन्य बच्ची को जन्म दिया जो बिल्कुल नॉर्मल हुई और अभी तक जीवित और स्वस्थ है। बच्ची की उम्र अभी तीन वर्ष है। शनिवार रात को लगभग डेढ़ बजे महिला ने फिर ऐसे ही बच्चे को जन्म दिया जो बिल्कुल पहले बच्चे की तरह ही पैदा हुआ है।

माछरा सीएचसी प्रभारी डॉ.तरुण राजपूत ने बताया कि हार्लेक्विन इक्थ्योसिस नामक डिसऑर्डर का शिकार होने के कारण ऐसे बच्चों का जन्म होता है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चों के शरीर पर सामान्य त्वचा की जगह सूखी, पपड़ीदार त्वचा होती है। शरीर पर अधिकांश भाग में बहुत सख्त, मोटी त्वचा होती है। जो गहरी दरारों के साथ बड़े बड़े टुकड़ों में टूटने लगती है। चेहरे की विशेषताओं में मुंह, आंखें और कान भी विकृत होते हैं जो उन्हें एक भयावह रूप देते हैं।

डॉक्टर राजपूत ने बताया 2019 में भी सीएचसी माछरा पर इस महिला ने एक बेबी गर्ल को जन्म दिया था जो कि ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह पाई थी। उन्होंने बताया कि यह एक गंभीर आनुवंशिक विकार (रेअर जेनेटिक डिसऑर्डर) है। लगभग तीन लाख  बच्चों में से कोई एक शिशु इसडिसऑर्डर का शिकार होता है। हार्लेक्विन इचिथियोसिस से पीड़ित शिशुओं को जन्म के कुछ घंटो या कुछ दिनों बाद ही मौत हो सकती है। इसका कोई इलाज नहीं है। हालांकि, चिकित्सा प्रगति से इन बच्चों की स्थिति में काफ़ी सुधार हुआ है।

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