मायावती ने BJP के दवाब में आकाश आनंद को हटाया? फैसले से कन्फ्यूज हुए दलित

आँखों देखी
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मायावती और आकाश आनंद
मायावती और आकाश आनंद

लखनऊ। साल 2007 में यूपी की करीब 40 फीसदी वोट हासिल करके पूर्ण बहुमत से सत्ता में  बहुजन समाज पार्टी आज अपने सियासी ढलान पर है। मायावती की निष्क्रियता के चलते सभी मजबूत नेता पार्टी छोड़कर जा चुके हैं। वहीं बसपा का परंपरागत वोट बैंक भी लगभग सिफ्ट हो चुका है। बावजूद इसके मायावती संभलने की हालत में नजर नही आती है। लोगों के मन में सवाल है कि क्या इसके पीछे कोई बड़ी वजह है‚ क्या किसी डर की वजह से मायावती ने पार्टी और खुद को सीमित कर लिया है। आज इसी बारे में हम बात करेंगे।

10 दिसंबर 2023 को मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर पद पर नियुक्ति करने के साथ अपना सियासी उत्तराधिकारी घोषित किया था। तब मायावती के इस फैसले से ये माना जा रहा था कि अब BSP पुराने तेवर में आ सकती है। आकाश आनंद भी नई उर्जा के साथ लोगो के बीच जाकर अपनी राजनैतिक जमीन तैयार कर रहे थे। लेकिन अचानक मायावती ने पांच महीने के बाद अपना फैसला वापस ले लिया है और कहा कि पूर्ण परिपक्व होने तक आकाश आनंद को दोनों जिम्मेदारियों से मुक्त किया जा रहा है। मायावती ने आकाश आनंद पर फैसला ऐसे समय लिया है जब 2024 के चुनाव के लिए तीसरे चरण की वोटिंग खत्म हुई थी, लेकिन अभी चार चरणों के चुनाव बाकी है. ऐसे में मायावती के एक्शन पर बहुजन समाज के लोगों को भी हैरत में डाल दिया है.

मायावती ने आकाश को निकालने का तरीका भी बेहद हैरान करने वाला अपनाया है‚ उन्होने एक लैटर जारी करके आकाश आनंद को अपरिपक्व तक बता दिया। इससे आकाश आनंद का सियासी कैरियर शुरू हाेने से पहले ही खत्म हो गया। दलित और आदिवासी संगठनों के राष्ट्रीय परिसंघ (NACDAOR) के अध्यक्ष अशोक भारती कहते हैं बसपा की कमजोर होती सियासत के बीच मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना सियासी वारिस घोषित किया था, लेकिन जिस तरह चुनाव के बीच हटाया और उसे अपरिपक्क बताया है, उससे बसपा को चुनावी नुकसान हो सकता है. आकाश आनंद पर एक्शन लेने का दलित समुदाय और बसपा के लोगों में संदेश यही गया है कि मायावती ने ये फैसला बीजेपी के दबाव में आकर लिया है, क्योंकि आकाश अपनी रैलियों में सपा-कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी को टारगेट कर रहे थे। मायावती के इस फैसले से उसके वोटर भी हैरान हैं। दावा किया जा रहा है कि मायावती ने BJP के दबाव में ये फैसला लिया है।

क्या BJP के दबाव में आकाश आनंद को हटाया?

वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस भी यह मानते हैं कि मायावती ने सियासी तौर पर बहुत ही गलत फैसला लिया है और दलित समुदाय को हैरत में डाल दिया है. कलहंस कहते आकाश आनंद अपनी रैलियों में उन्हीं मुद्दों को उठा रहे थे, जो बहुजन समाज से जुड़े हुए हैं. वो संविधान बदलने के मुद्दे को धार दे रहे थे, उसको हिट कर रहे थे. बहुजनों के बीच एक दलित युवा नेता संविधान का मुद्दा उठा रहा था, जो मायावती का सियासी वारिस हैं. उसका असर दलितों के बीच तेजी से हो रहा था. इससे बसपा के युवा मतदाता उत्साह से भरे नजर आ रहे थे. दलित युवाओं को आकाश में अपना नेता नजर रहा था और राजनीतिक भविष्य नजर आने लगा. मायावती से छिटककर दलित मतदाताओं को आकाश आनंद जोड़े रखने में सफल होते दिख रहे थे, जो बीजेपी के लिए टेंशन बनती जा रही थी.

सिद्धार्थ कलहंस का ये भी कहना है दलित समुदाय महसूस कर रहा है कि मायावती का फैसला उनका नहीं है बल्कि बीजेपी के दबाव में लिया गया है. बसपा का निराश युवा खासकर अंबेडकरवादी सपा और कांग्रेस की तरफ जा सकते हैं, क्योंकि वैचारिक रूप से संघ और बीजेपी के विरोधी हैं. आकाश पर एक्शन लेने और बसपा में बदले गए टिकटों से एक बात साफ हो गई है कि मायावती 2022 वाले मोड में चली गई है, जहां पर खुद जीतने के बजाय सपा-कांग्रेस को हराने की कोशिश में है, लेकिन इसमें वो अपना ही नुकसान कर रही हैं।

दलितों को असमंजस में डालने वाला फैसला

बसपा की सियासत को करीब से देखने वाले सैय्यद कासिम भी मानते हैं कि मायावती ने आकाश आनंद को पद से हटाकर बसपा का सियासी नुकसान किया है और इसका सीधा फायदा सपा को यूपी में होगा. आकाश आनंद ने बसपा के तमाम युवाओं को एक्टिव किया था, जो काफी समय से निराश बैठे हुए थे. आकाश ने यूपी में अपनी डेढ़ दर्जन से ज्यादा रैलियां करके बीजेपी में जा रहे बसपा के वोटों को रोकने का काम किया लेकिन मायावती के फैसले के बाद उनके लिए सपा के मजबूत विकल्प बन सकती है, लेकिन अखिलेश यादव जिस तरह से बसपा पर टिप्पणी कर रहे हैं, उससे दलितों को असमंजस में डाल रहा है.

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