उत्तर प्रदेश माध्यमिक बोर्ड और सीबीएससी बोर्ड के 10वीं और 12वीं कक्षा की मेन सब्जेक्ट की परीक्षा शुरू हो रही हैं। छात्रों के परीक्षा केंद्र अपने शिक्षण संस्थान से ज्यादातर 10 से 15 किमी दूर होते हैं। परीक्षा केंद्रों पर जल्दी पहुंचने के लिए कुछ नाबालिग छात्रों के परिजन उनको साथ लेकर परीक्षा केंद्र पर जाते हैं तो वहीं कुछ छात्रों के अभिभावक आलस या समय की कमी के कारण अपने नाबालिग बच्चों को वाहन सौंप देते हैं। पेपर छूटने के बाद ज्यादातर बच्चों में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ रहती है जिस कारण वो तेज गति से अपनी बाइक को भगाकर अपनी और दूसरों को जान जोखिम में डालते हैं।
क्या है नियम
हालांकि मोटरवाहन अधिनियम के सेक्शन 4 181 के तहत 18 वर्ष के कम उम्र वालों का ड्राइविंग करना गैरकानूनी है। यदि कोई वाहन स्वामी 18 वर्ष से कम उम्र के बालक या बालिकाओं को वाहन चलाने के लिए देता है तो उसे 3 साल की जेल की सजा और 25 हजार के जुर्माना से दंडित किया जाएगा। यही नहीं गाड़ी का रजिस्ट्रेशन भी एक साल के लिए रद्द किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश परिवहन यातायात कार्यालय की तरफ से शिक्षा निदेशक माध्यमिक को भी यह आदेश भेजा है। इसके बावजूद भी सड़कों पर बिना हेलमेट ये किशोर छात्र फर्राटे से सड़को पर बाइक को लहराकर घूमते हैं। इनको पुलिस और कानून का तो छोड़ो अपनी जान का भी खतरा नहीं है।
पुलिस से ज्यादा अभिभावकों पर जिम्मेदारी
दरअसल, बाइक सवार छात्रों को देखकर पुलिस का भी ढुलमुल रवैया रहता है। हालांकि अगर पुलिस सख्ती दिखाए तो मजबूरन ही सही अभिभावक अपने नाबालिग बच्चों के हाथ में बाइक देने से बचेंगे। वहीं अभिभावकों को यह समझना चाहिए कि उनकी जरा सी लापरवाही कहीं उनको ताउम्र का जख्म न दे जाए।
मनोज कुमार