लोकसभा चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं. एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए प्रगति कर रही है, जिसकी बानगी अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दिन देखने को मिली, वहीं दूसरी तरफ इस सबसे बड़े उत्सव के दूसरे ही दिन देश, केंद्र की बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने बिहार के लिए बड़ा ऐलान किया है. एक राजनीतिक जुआ खेला गया है. इस दांव में किसी का पलड़ा भारी नहीं है क्योंकि कर्पूरी ठाकुर जन नेता रहे हैं और बिहार की जनता के दिलों में उनकी अमिट छाप है. महिला आरक्षण हो या दलित उत्थान, आज जो भी चर्चा हो रही है, वह बिहार के लिए पहले ही कर चुके हैं. बिहार के दिग्गज समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर की जयंती 24 जनवरी को है और उससे ठीक एक दिन पहले केंद्र सरकार ने उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा कर लोकसभा चुनाव से पहले मास्टरस्ट्रोक खेला है.
भाजपा के इस दांव ने बिहार की राजनीति में हलचल तेज कर दी है और महागठबंधन की सरकार को लेकर कई तरह की आशंकाओं और कयासबाजी का दौर शुरू हो गया है। पहले से ही जदयू और राजद के रिश्ते में अनबन को लेकर कई तरह की बातें कही जा रही थीं तो वहीं मंगलवार के दिन नीतीश कुमार के राज्यपाल से मुलाकात की बात इस रिश्ते में कयासबाजी को खूब हवा दी और कई तरह की खबरें लोगों को देखने को मिलीं। 40 मिनट तक चली इस मुलाकात ने कई आशंकाओं और संभावनाओं को हवा दे दी है।
बिहार में सियासी सरगर्मी तेज हुई
सीएम नीतीश कुमार और राज्यपाल की मुलाकात से शुरू हुआ अटकलों का दौर पूरे दिन चलता रहा और फिर शाम होते-होते केंद्र सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा कर दी. इस खबर से जहां बिहार की आम जनता हैरान है वहीं राजनीतिक महकमे में भी बड़ी हलचल शुरू हो गई है. एक तरफ जहां नीतीश कुमार ने इसके लिए पीएम मोदी को धन्यवाद दिया और अपने पहले वाले ट्वीट को एडिट कर पोस्ट किया, वहीं दूसरी तरफ राजद नेता इस फैसले से ज्यादा खुश नहीं दिखे और उन्होंने बीजेपी पर जमकर आरोप लगाए और इसे वोट बैंक का बड़ा दांव बताया. . वहीं, बीजेपी के सहयोगी दल जो बिहार से ताल्लुक रखते हैं और गठबंधन छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए हैं, उन्होंने भी इस मुद्दे पर जेडीयू के प्रति नरमी दिखाई है.
कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने के क्या हैं सियासी मायने?
पेशे से शिक्षक और एक सफल राजनेता जननायक कर्पूरी ठाकुर अपनी ईमानदारी और स्वच्छ छवि के मुख्यमंत्री के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण की समाजवादी वैचारिक विरासत को आगे बढ़ाया। वह अपनी ईमानदारी और जनहित में लिए गए अहम फैसलों के लिए भी जाने जाते हैं। लालू और नीतीश दोनों ने कर्पूरी ठाकुर की राह पर चलकर बिहार में अपनी राजनीति की है और अब बीजेपी ने लोकसभा चुनाव से पहले और आगामी विधानसभा चुनाव में बिहार में पैठ बनाने के लिए एक बार फिर अपना बड़ा दांव खेला है. इसे भुनाने की कोशिश भी की है. साथ ही इस दांव से बीजेपी नीतीश के दिल में भी जगह बनाने की कोशिश करेगी.
कर्पूरी ठाकुर के नक्शे कदम पर चले नीतीश
आज जिस आरक्षण की बात हो रही है, उसे कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए लागू किया था. उस समय बिहार देश का एकमात्र राज्य था जहां ओबीसी को आरक्षण दिया जाता था और नौकरियों में 26 फीसदी कोटा ओबीसी के लिए आरक्षित था. इतना ही नहीं कर्पूरी ठाकुर ने सीएम रहते हुए बिहार में शराब पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था. नीतीश के ये फैसले उन्हीं से प्रेरित हैं. बिहार के राजनेता हों या आम लोग, कर्पूरी ठाकुर लोगों के दिलों में बसते हैं। नीतीश कुमार ने ही सबसे पहले कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग की थी और तब से लेकर आज तक यह मांग उठती रही है जिसे अब भारत सरकार ने मान लिया है.
टूटी और जुड़ी, फिर हुई लालू-नीतीश की दोस्ती
बिहार में लालू और नीतीश के सियासी रिश्ते की बात करें तो दोनों के दिल कई बार मिले और फिर अलग हो गए. नीतीश कुमार और लालू की दोस्ती बहुत पुरानी है. नीतीश ने बिहार में कभी लालू की पार्टी राजद के साथ गठबंधन कर सरकार चलाई तो कभी गठबंधन तोड़कर बीजेपी से दोस्ती कर सरकार बनाई. नीतीश कुमार कभी राजद-कांग्रेस और वाम दलों के साथ तो कभी भाजपा के साथ राजनीतिक गठबंधन करते रहे हैं। फिलहाल वह राजद-कांग्रेस के साथ महागठबंधन में हैं और बिहार के मुख्यमंत्री हैं। लेकिन यह गठबंधन रहेगा या टूट जाएगा, इसे लेकर अटकलें चल रही हैं और कहा जा रहा है कि बीजेपी के प्रभाव में नीतीश फिर से पाला बदल सकते हैं.
भाजपा ने चला है बड़ा सियासी दांव?
बिहार की राजनीति में फिलहाल बहुमत नहीं होने के कारण वहां गठबंधन सरकार मजबूरी है. जहां तक जदयू और राजद के बीच तालमेल की बात है तो शराबबंदी समेत कई अन्य मुद्दों पर सहमति नहीं बन पाई और नेताओं की बयानबाजी ने इस रिश्ते में आशंकाओं और संभावनाओं को जगह दे दी. जेडीयू के गोपाल राय हों या फिर राजद के चन्द्रशेखर, दोनों की बयानबाजी ने हमेशा दोनों पार्टियों के रिश्ते पर सवालिया निशान लगाया है. फिलहाल नीतीश कुमार और लालू यादव बार-बार कह रहे हैं कि गठबंधन में कोई दिक्कत नहीं है और बिहार में सब कुछ ठीक है. लेकिन अगर पिछले कुछ महीनों की बात करें तो ऐसा लग रहा है कि सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है.
जदयू मोह, विपक्षी एकता, दोनों चाहिए
एक महीने पहले ही दिल्ली में हुई नेशनल सुपर मार्केट मीटिंग में नीतीश कुमार ने ललन सिंह के हाथ से उनकी पार्टी की कमान छीन ली थी. कहा जा रहा था कि ललन सिंह के करीबी यादव को प्यास लग रही थी और वह बेलगाम हो रहे थे. कहा जा रहा था कि ललन सिंह राजदत के विलय की योजना बना रहे थे और इसके नीतीश कुमार को पद से हटा दिया गया था। इससे पहले नीतीश कुमार ने भी अपनी बात आगे रखते हुए आरसीपी सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटा दिया था. उन पर पार्टी को तोड़ने की साजिश रचने का आरोप लगाया गया. आरसीपी सिंह और फिर ललन सिंह के बाद नीतीश कुमार ने हथियार की कमान अपने हाथ में ली और साबित कर दिया कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह अपनी पार्टी को नहीं हराएंगे.
नीतीश कुमार भी एसोसिएशन के वास्तुकार बने और बिहार के बाहर ऑर्केस्ट्रा सहयोगियों को एकजुट करने की कोशिश की। उनकी दिल्ली इच्छा थी कि वे गोदाम में हों, हालांकि उन्होंने बार-बार कहा था कि अगर बीजेपी को हराना है तो जनता के साथ आना होगा, मेरी कोई इच्छा नहीं है. उन्होंने गठबंधन के लिए कड़ी मेहनत की और इच्छा जताई कि वामपंथी यादव और सहयोगी उन्हें भारतीय गठबंधन का चेहरा बनाएं, लेकिन हकीकत में उन्होंने इसमें कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई और न ही किसी अन्य दल से गठबंधन किया. इंडिया अलायंस की बैठक में नीतीश ने यहां तक कह दिया था कि उन्हें पैनलजी को ही कन्वेंस देने में खुशी होगी. यदि अपग्रेड में अब क्राई विकल्प नहीं बचा है तो क्या करें
अमित शाह के बयान से अटकलों को मिली हवा
इस बीच अमित शाह का बिहार दौरा और उनका ये बयान कि पुराने साथी साथ आना चाहें तो उनका स्वागत है, इसने हो सकता है कि नीतीश कुमार के दिल में आस जगाई हो कि विपक्ष नहीं तो पुराने साथी सही। सियासी महकमे में चर्चा तज हो गई कि नीतीश कुमार फिर से पलटी मार सकते हैं। हालाकि अगर वे ऐसा सोचते भी हैं तो उनके राजनीतिक चरित्र पर सवाल उठना भी लाजिमी है। लेकिन कहते हैं कि युद्ध और राजनीति में सब जायज है। हाल फिलहाल राजद नेता और बिहार के शिक्षामंत्री चंद्रशेखर के विभाग में बदलाव करना और फिर अचानक राज्यपाल से मुलाकात करना और उन्हें वीसी की नियुक्ति को लेकर चर्चा ऐर फिर तुरंत वीसी की नियु्ति का फरमान। इसके साथ ही कर्पूरी ठाकुर के लिए भारत रत्न देने का मोदी सरकार का ऐलान करना बड़े संशय की ओर इशारा करता है।
फरवरी में बिहार आएंगे पीएम मोदी
उधर, कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने पर जेडीयू नेताओं ने खुशी जताई और सीएम नीतीश ने पीएम मोदी को बधाई दी. बिहार में बीजेपी नेताओं ने पटाखे भी फोड़े. वहीं, राजद ने बीजेपी पर तंज कसते हुए कहा कि उन्हें भारत रत्न देने की बात आज ही क्यों याद आई, यह चुनावी राजनीति और वोट के लिए किया गया था. इन सबके बीच पीएम मोदी भी अगले महीने के पहले हफ्ते में बिहार दौरे पर जा रहे हैं. संभव है कि पीएम मोदी की मुलाकात नीतीश कुमार से भी हो और कुछ और भी हो.
चुनाव भी नजदीक आ रहे हैं और बीजेपी के पास बिहार में अपना कोई खास जनाधार नहीं है और न ही नीतीश कुमार से मुकाबले के लिए कोई पीएम चेहरा है. बिहार में पैठ बनाने के लिए बीजेपी को एक बार फिर नीतीश कुमार को मनाना होगा. वहीं, नीतीश के लिए विपक्षी गठबंधन अब फायदे का सौदा नहीं दिख रहा है और बीजेपी अब बिहार में लोकसभा चुनाव जीतने के लिए हर हथकंडा अपनाएगी.
फिर पलटी मारेंगे नीतीश?
लालू और नीतीश राजनीति के बीच के खिलाड़ी हैं. नीतीश की दिली इच्छा पीएम बनने की थी और लालू की दिली इच्छा तेजस्वी को किसी भी कीमत पर सीएम बनाने की है. लोकसभा चुनाव के बाद अगले साल बिहार में विधानसभा चुनाव भी होंगे. नीतीश के विकल्प के तौर पर बीजेपी का समर्थन फायदेमंद हो सकता है. बीजेपी नीतीश की मजबूरी का फायदा उठाकर अपनी राजनीति साधने की कोशिश कर सकती है, जिसके लिए उसने बड़ा दांव खेला है और कपूरी ठाकुर के नाम पर भारत रत्न देने का ऐलान कर नीतीश के दिल में दस्तक दे दी है.
वहीं, नीतीश कुमार के करीबी रहे प्रशांत किशोर ने भी कहा है कि नीतीश कुमार का राजनीतिक करियर अब खत्म हो गया है और उन्हें खुद नहीं पता कि वह क्या करेंगे. हालांकि लालू हमेशा कहते रहे हैं कि नीतीश कुमार के पेट में दांत है. नीतीश कुमार को पलटूराम नाम भी लालू ने ही दिया था. अब ये तो वक्त ही बताएगा कि नीतीश कुमार फिर से बाजी पलटेंगे या गठबंधन का साथ देंगे. राजनीतिक हलके में नीतीश के बीजेपी से हाथ मिलाने की अटकलें तेज हैं. ऐसे में कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा करना बीजेपी के लिए एक तीर से कई निशाने साधने जैसा लग रहा है.