मनोज कुमार
“कैलास” (शिव का निवास) जिसके शिखर सदा हिम (बर्फ) से ढके होते हैं, जिसकी श्वेत आभा को देखकर मानव ही नहीं देवता तक भी मंत्रमुग्ध हो जाएं। काली चट्टानों से बना पिरामिडनुमा कैलास पर्वत अपने आस पास के शिखरों से अधिक ऊंचा है। पूर्व में अश्वमुख, पश्चिम में हाथीमुख , उत्तर में सिंहमुख, दक्षिण में मोरमुख से उद्गम होती 4 नदियां- ब्रह्मपुत्र, सिन्धु, सतलज व करनाली (घाघरा) पवित्र धाराएं मानसरोवर और राक्षसताल झील से निकलती हैं। अधिक जटिल बनावट, कठिन पारिस्थितिक माहौल और अद्वितीय धार्मिक महत्व के कारण कैलास अजेय शिखर बना हुआ है। आधुनिक युग में कोई भी व्यक्ति कैलाश पर्वत के शिखर पर नही पहुंच पाया है। कैलाश शिखर अस्पृश्य है।
हिन्दुओं के धार्मिक ग्रंथों में इस पर्वत पर आदिदेव भगवान शिव का निवास स्थान बताया गया है। शिव, पार्वती, गणेश और कार्तिकेय व नंदी की कई पौराणिक कथाएं इस पर्वत को हिन्दुओं में विशेष और पवित्र स्थान देती हैं।पौराणिक कथाओं में मानसरोवर झील को ही छीरसागर कहा गया है। भीष्मपर्व में कैलास का दूसरा नाम ‘हेमकूट’ है और वहां यक्षों का निवास माना गया है। विष्णुपुराण में वर्णन है कि इसके चार मुख क्रिस्टल, रूबी, स्वर्ण और नीलम से बने हैं। कहा जाता है कि हवा न होने पर भी राक्षसताल में तीन फीट तक ऊँची लहरें उठती रहती हैं। अलकनंदा नदी कैलास के निकट बहती हुई बद्रीनाथ पहुंचती है और नीचे गंगा के गंगोत्री वाले स्त्रोत में मिल जाती है। इस सिद्धांत से तो संभव है कि यही गंगा का मूल स्त्रोत भी हो।
बौद्धों के लिए कैलास ब्रह्मांड की नाभि यानी ब्रह्मांड का केंद्र (एक्सिस मुंडी) है। जिसको वे मेरुपर्वत के नाम से जानते हैं। तिब्बती बौद्ध इसे कांगड़ी रिनपोच (अनमोल हिम पर्वत) कहते हैं। बौद्धों का मानना है कि कैलाश पर्वत चक्रसंवर का घर है, जो उनके धार्मिक विचार यानी स्वयं सर्वोच्च आनंद का प्रतीक हैं। धारणा है कि कैलास पर्वत के शिखर तक ले जाने वाला रास्ता ही स्वर्ग की सीढ़ी है।
जैन धर्म की मान्यता है कि उनके पहले तीर्थंकर ऋषभदेव को कैलास स्थित अष्टापद नामक पर्वत पर निर्वाण यानी मोक्ष प्राप्त हुआ था। 24वें और आखिरी तीर्थंकर वर्धमान महावीर को उनके जन्म के तुरंत बाद भगवान इंद्र स्वयं उनको मेरु पर्वत लेकर गए थे और यहीं उन्हें विशेष शक्तियां प्राप्त हुई। कैलास को पूजने वाले सभी धर्मों के लोगों के अनुसार, इसकी चढ़ाई पर पैर रखना बहुत बड़ा पाप है। शायद इस वजह से भी यह अजेय है। जबकि इससे लगभग 2200 मीटर ऊंचा सागर माथा (माउंट एवरेस्ट) पर 7 हजार बार चढ़ाई की जा चुकी है।
कैलास शिखर से जुड़े सभी धर्मों का मानना है कि कैलास की पैदल परिक्रमा करना पवित्र कर्म है ऐसा करने से सौभाग्य प्राप्त होता है। कैलास के चारों ओर की परिक्रमा कुल 52 कि.मी. लंबी है। ऐसी मान्यता है कि कैलाश की पूरी परिक्रमा एक ही दिन में की जानी चाहिए, लेकिन असमान इलाक़ों, ऊँचाई की बीमारी (माउंटेन सिकनेस) और कठोर वातावरण यात्रियों के लिए कठिन परिस्थितियों उत्पन्न करते हैं। सामान्य व्यक्ति को परिक्रमा करने में लगभग तीन दिन लग जाते हैं।
कैलास यात्रा चार स्थानों से शुरू होती है। पहला सिक्किम के नाथू ला दर्रे से, दूसरा नेपाल के काठमांडू से होते हुए ल्हासा के रास्ते तीसरा भी नेपाल के ही नेपालगंज से हिल्सा होते हुए व चौथा रास्ता उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के लिपुलेख दर्रे के रास्ते शुरु होता है।लिपुलेख दर्रे में ओम पर्वत स्थित है जिसकी चोटी पर पड़ने वाली बर्फ प्राकृतिक रूप से चोटी पर ओम का चिन्ह बनाती है। चारों ही रास्तों में आपको चीन के सीमा में प्रवेश करना ही होता है।