यहाँ रखे हैं कर्ण के कवच-कुंडल, इंद्र साथ नहीं ले जा पाए स्वर्ग

Pankaj Sharma
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कर्ण का कवच कुंडल: महाभारत के पात्रों में कर्ण जितना दानी कोई नहीं था। कर्ण सूर्य देव के पुत्र थे, जिन्हें कुंती ने दुर्वासा ऋषि द्वारा दिए गए मंत्र से विवाह से पहले प्राप्त किया था। कर्ण को सूर्य देव से दिव्य कवच और कुंडल मिले थे, जिससे कोई भी उन्हें नुकसान नहीं पहुंचा सकता था। कर्ण जितने पराक्रमी और धनुर्धर थे, उससे कहीं बड़े दानवीर भी थे। उनके बारे में कहा जाता है कि उनके द्वार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता था, जिसने भी उनसे कुछ मांगा, उसे मिल जाता था, चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों। महाभारत के युद्ध से पहले इंद्र देव को चिंता थी कि अगर उनके पुत्र अर्जुन ने कर्ण से युद्ध किया, तो कर्ण उन पर हावी हो सकते हैं।

इंद्र देव ने कर्ण को धोखा दिया

एक दिन कर्ण स्नान करके सूर्य देव की पूजा कर रहे थे, जैसे ही पूजा समाप्त हुई, इंद्र देव ब्राह्मण का रूप धारण करके आए और उनसे कवच और कुंडल का दान मांगा। कर्ण ने बिना सोचे-समझे वह दिव्य कवच और कुंडल इंद्र देव को दान कर दिए। अगर इंद्र देव ने धोखा नहीं दिया होता, अगर महाभारत युद्ध में कर्ण के पास वो कवच और कुंडल होते तो उन्हें हराना और भी मुश्किल हो जाता।

कहां रखा है कर्ण का कवच-कुंडल?

प्रचलित मान्यताओं के अनुसार जब इंद्र देव को कर्ण का कवच और कुंडल दान में मिला तो वे उसे स्वर्ग नहीं ले गए। अगर वे कर्ण का कवच और कुंडल अपने साथ नहीं ले गए तो फिर वो कहां है? कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ के बीजापुर गांव में एक गुफा है, जिसमें अंदर-बाहर जाने का कोई रास्ता नहीं है। उस गुफा के अंदर से लगातार एक रोशनी निकलती रहती है।

अब जब उस गुफा के अंदर आने-जाने का कोई रास्ता नहीं है तो सूरज की रोशनी भी उसके अंदर नहीं पहुंच पाती। लेकिन उस गुफा के अंदर से रोशनी निकलती रहती है। माना जाता है कि जब इंद्र देव कर्ण का कवच और कुंडल ले जा रहे थे, तब सूर्य देव उनसे बहुत नाराज हुए और उन्हें श्राप दे दिया। श्राप के कारण इंद्र के रथ का पहिया इसी स्थान पर फंस गया। तब उस स्थान पर एक गुफा बनाई गई और कर्ण के कवच और कुंडल को वहां छिपा दिया गया। वह कवच और कुंडल इतने शक्तिशाली थे कि इंद्र भी उसे अपने साथ स्वर्ग नहीं ले जा सके थे।

मान्यता है कि छत्तीसगढ़ के बीजापुर की इस गुफा में आज भी कर्ण के कवच और कुंडल रखे हुए हैं। स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि उस गुफा के पास इंद्र के रथ के पहिए के निशान भी मौजूद हैं।
कोणार्क में छिपे हैं कवच-कुंडल
एक अन्य मान्यता के अनुसार कर्ण के कवच और कुंडल पुरी के कोणार्क में रखे हुए हैं। कहा जाता है कि इंद्र देव ने इसे छल से हासिल कर लिया था, जिस कारण वे इसे स्वर्ग नहीं ले जा सके। तब उन्होंने इसे समुद्र किनारे छिपा दिया था। उन्हें ऐसा करते हुए चंद्र देव ने देख लिया था। जब चंद्र देव कर्ण के कवच और कुंडल ले जाने लगे तो समुद्र देव ने उन्हें रोक दिया। लोक मान्यताओं के अनुसार तब से सूर्य देव और समुद्र देव कवच और कुंडल की रक्षा करते आ रहे हैं।

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