कानपुर: दुर्लभ बीमारी की वजह से जरा सा चलते ही अपने आप टूट जाती है 6 साल के अभय की हड्डियां

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उत्तर प्रदेश: कानपुर जिले के घाटमपुर में एक छह साल के बच्चा को बिस्तर से नीचे उतारने से भी मां-बाप डरते हैं। ऐसा इसलिए की कहीं जरा सा उछलने या तेज चलने से उसकी हड्डियां न टूट जाएं। अपने आप हड्डियां टूटने के डर से अभय को कभी स्कूल नहीं भेजा और ना ही उसकी खेलने नहीं दिया जाता है। हालांकि हड्डी टूटने के कुछ समय फिर खुद ही जुड़ भी जाती है। डॉक्टर ने बताया कि बच्चा निरंतर मल्टीपल फ्रैक्चर को ऑस्टियोजेनेसिस इमपरफेक्टा बीमारी का शिकार है। यह बीमारी एक लाख बच्चों में किसी एक को हो सकती है।

कानपुर के घाटमपुर थाना क्षेत्र के कोहरा गांव के बच्चे अभय के पिता अतरसिंह बताते हैं कि अभय का जन्म 6 सितंबर 2016 को घाटमपुर सीएचसी में हुआ था।कुछ दिन बाद उसके शरीर में असामान्य लक्षण दिखने पर डॉक्टरों के पास ले गए  तमाम तरह की जांचों के बाद डॉक्टरों ने बताया कि उसे ऑस्टियोजेनेसिस इमपरफेक्टा नामक बीमारी है। इस बीमारी में हल्के से झटके में फ्रैक्चर हो जाता है। उस पर प्लास्टर नहीं किया जा सकता क्योंकि हड्डियां यह प्रेशर भी बर्दाश्त नहीं कर पाएंगी।

अभय की मां रेखा बताती हैं की अन्य बच्चों को स्कूल जाते देख अभय भी स्कूल जाने जिद करता है लेकिन उसे स्कूल भेजना संभव नहीं है। उसको घर के बाहर पलंग पर बैठा दिया जाता है। परिजन बताते हैं कि अभय खुशमिजाज है, इससे परिवार को हिम्मत मिलती है। मोबाइल पर गेम खेलना व यू-ट्यूब पर वीडियो देखना शौक है। अंगुलियां टेढ़ी हो गई हैं लेकिन मोबाइल पर वह तेजी से काम करता है।

 
क्या है ऑस्टियोजेनेसिस इमपरफेक्टा बीमारी

डॉक्टरों के अनुसार, विशेष हार्मोन की कमी से लाखों में किसी एक को होने वाली दुर्लभ बीमारी है। अनुवांशिक खराबी के कारण कोलैजन कम बनाता है जिससे हड्डियां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि थोड़े से प्रेशर से टूट जाती हैं। रोगी में मांसपेशियों कम विकसित होती हैं। तथा उसका कद भी छोटा रह सकता है। इस बीमारी का अब तक कोई इलाज नहीं बना है। इस बीमारी को किसी सामान्य टेस्ट में नहीं पकड़ा जा सकता।

इस मामले में जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के ऑर्थोपेडिक विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. चंदन कुमार कहते है कि 90% मामलों में यह आनुवांशिक बीमारी है। 10% मामलों में इस जीन में नया म्यूटेशन होता है। बार-बार टूटने और जुड़ने की वजह से शरीर की अस्थियां विकृत हो जाती हैं। इस बीमारी का कोई स्थायी उपचार नहीं है

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