Used Vehicles: मनमाना है NGT का आदेश‚ महज 10-15 साल में कबाड़ नही होते हैं निजी वाहन

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रवि चौहान-  New Delhi: भारत में खुद की गाड़ी (own car) खरीदने का सपना हर एक मध्यमवर्गीय परिवार (Middle class family) का होता है। दशकों तक सेविंग करने के बाद मुश्किल से लोग अपना यह सपना पूरा कर पाते हैं। कुछ लोग तो परिवार की सुविधा (family comfort) के लिए ही वाहन खरीदते हैं‚ ताकि ट्रेन और बसों की भीड़ में धक्के खाने से बचा जा सके। 90 प्रतिशत लोग इनमें ऐसे होते हैं जो अपनी गाड़ी के मैनटेन्स (vehicle maintenance) का भी बहुत ज्यादा ध्यान रखते हैं। धूल-मिट्टी से बचाने के साथ-साथ धूप और बारिश से भी बचाव करते हैं। यूं कह सकते हैं कि परिवार के सदस्य की तरह ही लोग अपनी गाडियों का ध्यान करते हैं।

बहुत जरूरी होने पर ही एक मध्यमवर्गीय परिवार गाड़ी लेकर सड़क पर निकलता है। शादी समारोह में जाने या घर में किसी के बिमार होने पर ही इन लोगों की गाडियां बाहर नजर आती हैं। इस वजह से 10 या 15 साल में इन निजी वाहनों का कुछ नही बिगड़ता है। दस-पन्द्रह साल में कुछ गाडियां तो महज 45-50 हजार किलोमीटर भी नही चल पाती हैं। ऐसे में इन वाहनों को कबाड़ घोषित कर देना NGT का आदेश बेहद ही मनमाना है। इस अवधि में निजी वाहनों के मजह 30 प्रतिशत पुर्जे खराब हो पाते हैं। ऐसे ये गाडियां प्रदूषण कैसे फैला सकती हैं‚ यह बड़ा सवाल है।

 जानिए गाड़ी मालिकों का दर्द

इश्वर सिंह

हमारी टीम ने इस बारे में कई शहरों में लोगों से बात की। इस दौरान सबसे कोमन बात यह रही कि NGT के आदेश को सभी ने गलत बताया है। मेरठ के रहने वाले ईश्वर सिंह के पास भी अपनी निजी कार है‚ जिसकी अवधि दिसंबर 2024 में पूरी होने वाली है। उनका कहना है कि उन्होने कई साल तक सेविंग करने बाद साल 2009 में परिवार की सुविधा के लिए वैगनऑर कार खरीदी थी। तब से लेकर अब तक वह परिवार के सदस्य की तरह ही उसकी देखभाल करते आए हैं। गाड़ी की कंडिशन बहुत अच्छी है। जो महज 40 हजार किलोमीटर ही चल पायी है।

गाड़ी के टायर भी आधे से ज्यादा सुरक्षित हैं। ईश्वर सिंह का कहना है NGT के आदेश की वजह से महज कुछ महीनों बाद उन्हे अपनी प्यारी गाड़ी को छोड़ना पड़ेगा। इस कारण उन्होने इस बार गाड़ी का इंश्योरेंस भी नही कराया है। इंश्योरेंस नही कराने की वजह से पुलिस भी परेशान करने लगी है‚ इसलिए उन्होने अभी से ही अपनी गाड़ी काे चलाना बंद कर दिया है। बेचने की सोच रहे हैं तो  कबाड़ी मुश्किल से 30-35 हजार रूपए लगा रहे हैं। फिलहाल उनका बजट नई गाड़ी खरीदने का नही है।

अपनी गाड़ी के साथ अमित तोमर

मेरठ में ही शास्त्रीनगर में रहने वाले अमित तोमर ने भी साल 2009 में परिवार के लिए करीब 4‚50000 रूपए में सैंट्रों कार खरीदी थी। गाड़ी अब तक महज 55 हजार किलोमीटर तक ही चल पायी है। कंडिशन ऐसी है कि आज भी उनकी गाड़ी दूर से ही चमचमाती है। अमित कहते हैं कि पिछले 14 साल में उन्होने अपनी हर एक होली-दीपावली इस गाड़ी के साथ मनाई है। बीते समय में सैकडों खुशी के पल उन्हाेने अपनी कार के साथ बिताए हैं।  इस वजह से उन्हे अपनी गाड़ी से बेहद लगाव है। लेकिन अक्टूबर 2024 में उनकी गाड़ी की भी अवधि पूरी हो रही है। अमित का कहना है कि नई गाड़ी लेने का अभी बजट नही है‚ लेकिन उन्हे चिंता सता रही है कि महज 6-7 महीने बाद वो अपनी गाड़ी को लेकर सड़क पर नही निकल पाएंगे। अमित तोमर का कहना है कि वो सोच रहे हैं कि गाड़ी को बिजनौर ट्रांस्फर करा लें। लेकिन इस बात की कोई गारंटी नही है कि दूसरे जनपद में ट्रांस्फर कराने के बाद पुलिस उनकी गाड़ी को मेरठ में चलने देगी या नही। उनका कहना है कि NGT का आदेश मनमाना है। 10- 15 साल में निजी वाहनों का कुछ नही बिगड़ता है। व्यावसायिक वाहनों पर ही यह नियम लागू होना चाहिए।

व्यावसायिक वाहनों पर लागू हो नियम

लोगाें का मानना है कि NGT का आदेश व्यावसायिक वाहनों पर ही लागू किया जाए‚ लेकिन निजी वाहनों पर रोक लगाना खुलेआम शोषण करना है। इसके विरोध में सभी वाहन चालको को आवाज उठानी चाहिए। खुद सरकार को भी आम जनता के दर्द को समझना चाहिए। इस मामले में मोदीनगर के रहने वाले अशोक कुमार का कहना है कि आम आदमी के लिए 5 से 10 लाख रूपए की गाड़ी लेना कोई आसान काम नही है। जीवन भर की सेविंग और अपने खर्चों में कमी करके लोग किसी तरह से गाड़ी ले पाते हैं। लोग अपनी संपत्ति की तरह ही अपनी गाड़ी की देखभाल करते हैं। लेकिन महज 10-15 साल में इस तरह से किसी की संपत्ति को कबाड़ घोषित कर देना खुलेआम लूट के समान है। इस पर रोक लगनी चाहिए।

वाहन निर्माता कंपनियाें के दबाव में काम करती है सरकार 

देश में प्रदूषण एक बड़ी समस्या है‚ इस पर रोक लगाने के लिए जरूर कड़े कदम उठाने चाहिए। लेकिन इसकी आड़ में वाहन निर्माता कंपनियों को फायदा पहुंचाना और आम इंसान का शोषण करना बेहद गलत है। जानकारों का मानना है कि सरकार टैक्स के लालच और वाहन निर्माता कंपनियाें के दबाव में इस तरह के फैसले लेती है। जिसकी वजह से देश का मध्यम वर्ग प्रभावित होता है। व्यावसायिक वाहन तो 10-15 साल में प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं।  लेकिन 90 प्रतिशत निजी वाहन किसी भी हालत में प्रदूषण के लिए जिम्मेदार नही ठहराए जा सकते हैं। अगर इन वाहनो के कुछ पुर्जे प्रदूषण फैला रहे हैं तो उन्हे बदलने का विकल्प होना चाहिए। लेकिन एक अंग के खराब होने पर पूरे शरीर को बदलने का नियम मनमाना और अवैध है।

सोशल मीडिया पर भी उठने लगी है आवाज

NGT के मनमाने आदेश के खिलाफ निजी वाहन चालक अब सोशल मीडिया के जरिए अपनी आवाज उठाना शुरू कर रहे हैं और अन्य लोगों से समर्थन की मांग कर रहे हैं। इस तरह के ही एक संदेश में सभी दुपहियां एवं चौपहियां वाहनों के स्वामियों से कहा गया है कि आप सभी मिलकर NGT के द्वारा 10 साल एवं 15 साल के नियम का खुलकर विरोध करें‚ क्याेंकि यह खुलेआम अन्यान है। मांग में कहा गया है कि NGT का नियम केवल व्यवसायिक वाहनों के लिए ठीक है‚ परन्तु निजी वाहनों पर बिल्कुल भी लागू नहीं होना चाहिए। निजी वाहन इतने समय में कुछ ज्यादा नही चल पाते हैं। अति आवश्यक होने पर ही लोग इन्हे सड़क पर निकलते हैं। परिवार की सुविधा के लिए ही लोग वाहन खरीदते हैं। इस तरह से सरकार किसी सुविधा नही छीन सकती हैं।  अगर वाहन का कोई पार्ट खराब होता है तो उसे बदलकर ठीक करा लिया जाता है। लेकिन ऐसे में वाहन को कन्डम घोषित करना सरासर अन्याय है।

आपकी इस मामले में क्या राय है‚  हमें कमेंट करके जरूर बताइएगा।

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