लखनऊ। घर नही पीढ़ियों का रिश्ता टूट रहा है‚ आँखो में आंसू लिए बोले अगबरनगर के लोग

सड़क के किनारे खड़ी रूबीना। अकबरनगर को निहार रही हैं। आंखों में आंसू डबडबा रहा। मैं बात करना चाहा। वह कहती हैं क्या ही बोले बताइए,कुछ बच ही नहीं रहा। उन्होंने बात करते हुए कहा कि किसी तरह से घर के सामने दो कमरे लॉकडाउन के पहले बनवाए। पति का एक्सीडेंट हो गया। इलाज में ज्यादा पैसा खर्च हुआ तो कमरा किराया पर दे दिया।

आँखों देखी
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अगबरनगर में बुलडोजर की गड़गड़ाहट। चीखते-चिल्लाते लोग। बिखरा हुआ मलबा। तस्वीरें यह समझने के लिए काफी हैं कि जो लोग 70 साल से यहां रह रहे थे, अब उनका आशियाना एक झटके में उजड़ गया। पिछले 2 दिन में निगम और LDA ने 150 से अधिक मकान तोड़ दिए। जिस घर को महनत मजदूरी करके बनाया उसे टूटते हुए देख आंखों से आंसू नहीं थम रहे। लोगों का कहना है- ‘घर नहीं जिंदगी छूट रही है।’

दरअसल, ये मकान कुकरैल नदी किनारे बने हैं। सरकार की तरफ से डूब क्षेत्र होने का हवाला देकर यहां से लोगों को नए घरों में शिफ्ट किया जा रहा है। यहां बने मकानों को अवैध बताया जा रहा है। लेकिन यहां के लोग का सवाल है कि जब हमसे हाउस-टैक्स वॉटर टैक्स, बिजली बिल की वसूली की जा रही, तब हमारा घर अवैध कैसे हुआ?

इस कार्रवाई की हकीकत जानने के लिए पत्रकारो की टीम मौके पर पहुंची तब विस्थापित लोगों ने कहा- जो घर दिए जा रहे हैं वह बहुत छोटे हैं। उसमें घर का सामान तक नहीं आ सकेगा। अकबरनगर में सिर्फ हमारा घर नहीं, यहां से पीढ़ियों का रिश्ता है। रिश्ता-नाता, कामकाज, रोजी-रोटी का आधार यहीं से है। लेकिन घर ढहाकर जिंदगी उजाड़ दी गई है।

पहले ध्वस्तीकरण की 3 तस्वीरें देखिए…

अकबरनगर में जेसीबी लगाकर घरों के ध्वस्तीकरण की कार्रवाई करती टीम।
अकबरनगर में जेसीबी लगाकर घरों के ध्वस्तीकरण की कार्रवाई करती टीम।
70 साल से बसे लोगों के घरों को गिरा दिया गया।
70 साल से बसे लोगों के घरों को गिरा दिया गया।
मंगलवार को कार्रवाई के दौरान अधिकारियों के साथ भारी सुरक्षाकर्मी मौजूद रहे।
मंगलवार को कार्रवाई के दौरान अधिकारियों के साथ भारी सुरक्षाकर्मी मौजूद रहे।

अकबरनगर से विस्थापित हो रहे परिवारों ने जो कहा…
अकबरनगर के रहने वाले अनवर अली की उम्र (70) साल है। अनवर साइकिल मैकेनिक हैं। वह बताते हैं गोविंदनगर में जो मकान मिला है, उसका कब्जा नहीं मिला है। उससे पहले ही हमें निकाल दिया गया। अभी सिर्फ फ्लैट का आवंटन हुआ है। निर्माण कार्य पूरा भी नहीं हुआ है। अनवर बताते हैं कि हमें जो फ्लैट दिया जा रहा है वो बहुत छोटा है। फ्लैट में एक कमरा और एक बरामदा है। कमरे की लंबाई 8 फिट और चौड़ाई 10 फिट है। बरामदे की लंबाई और चौड़ाई दोनों 10 फिट है। एक बाथरूम है।

मेरे परिवार में रहने वाले 10 लोग हैं। यहां मकान बड़ा था। हम आसानी से रह पाते थे। जीवन की पूरी कमाई जोड़-जोड़ कर इस मकान को बनाया है। 70 साल से यहीं पर रहते आ रहे आज यह करोड़ों की जमीन और मकान है। यही सबकुछ है, लेकिन आज हमें यह छोड़ना पड़ रहा है।

यह तस्वीर अनवर अली के घर की है। अकबरनगर से जाने की तैयारी हो चुकी है। सामान बांधकर रखा है।
यह तस्वीर अनवर अली के घर की है। अकबरनगर से जाने की तैयारी हो चुकी है। सामान बांधकर रखा है।

आंखो में भरा आंसू बोली कुछ नहीं बोलेंगे, नहीं जल रहा चूल्हा
सड़क के किनारे खड़ी रूबीना। अकबरनगर को निहार रही हैं। आंखों में आंसू डबडबा रहा। मैं बात करना चाहा। वह कहती हैं क्या ही बोले बताइए,कुछ बच ही नहीं रहा। उन्होंने बात करते हुए कहा कि किसी तरह से घर के सामने दो कमरे लॉकडाउन के पहले बनवाए। पति का एक्सीडेंट हो गया। इलाज में ज्यादा पैसा खर्च हुआ तो कमरा किराया पर दे दिया। इसी से उनका इलाज हुआ, लेकिन अब इनकम की खत्म हो गई। अभी प्लॉट का आवंटन भी नहीं मिला है। इसके चलते टूटे हुए घर में रह रही। गैस, फ्रिज, कपड़ा, कूलर, बक्शे सहित अन्य सामान एक जगह इक्कठा कर के पड़ा है। उनका कहना है चूल्हा नहीं जल रहा। पिछले एक महीने से बिजली, पानी कटा हुआ है। स्थिति खराब है।

अकबरनगर की रूबीना ने कहा कि कभी सोचा नहीं था अकबरनगर से जाना होगा। सब कुछ चला गया।
अकबरनगर की रूबीना ने कहा कि कभी सोचा नहीं था अकबरनगर से जाना होगा। सब कुछ चला गया।

आशियाने के साथ छिन गया रोजी रोजगार
विनय बताते हैं कि 37 साल के हो गए हैं। यहीं पर रह रहे हैं। मां बाप पहले से रह रहे थे। परिवार में तीन भाई रहते हैं। घर एक ही को घर मिल रहा। सब अलग-अलग रहेंगे। ढपली में रहना पड़ेगा सामान लेकर वसंतकुंज जा रहे हैं। यहां पर कमाना, खाना और रहना सब एक साथ हो रहा था। सबकुछ छिन गया है। सामान को शिफ्ट करने का भी समय नहीं मिल रहा है। पिकअप से सामान लादकर ले जा रहे।

अकबरनगर से विस्थापित होने वाले विनय कहते हैं, रोजी-रोजगार सब यहीं था। घर मिल जाने से हमारा काम तो नहीं मिल जाएगा। घर कैसे चलेगा यही चिंता है।
अकबरनगर से विस्थापित होने वाले विनय कहते हैं, रोजी-रोजगार सब यहीं था। घर मिल जाने से हमारा काम तो नहीं मिल जाएगा। घर कैसे चलेगा यही चिंता है।

महिलाएं बोली हमें नहीं मिल रहा आवास
सरवरी ने कहा कि बिजली और बत्ती नहीं मिल रही है। हम यहीं पर रहते हैं। हमें मकान नहीं मिला है। हमारा आधार निशातगंज का है इसलिए नहीं मिला है। परिवार में 12 लोग हैं। सामान झोपड़ी में पड़ा है गिरा दें उसे क्या करना है। वहीं सबा परवीन कहती हैं कि हम फुटपाथ वाले हो गए हैं। खाने की दिक्कत है, राशन नहीं है। गरीबों की हालत खराब है। पांच साल पहले शादी हुई तो यहां आए, अब घर भी चला गया।

अकबरनगर की सरवरी कहती हैं कि मेरा आधारकार्ड निशातगंज का है। मुझे घर नहीं मिला। हम कहां जाएं समझ नहीं आ रहा।
अकबरनगर की सरवरी कहती हैं कि मेरा आधारकार्ड निशातगंज का है। मुझे घर नहीं मिला। हम कहां जाएं समझ नहीं आ रहा।

नाम बताने से बच रहे लोग, सामान निकालने के लिए भी जगह नहीं
एक व्यक्ति ने कहा कि घर को तोड़ा जा रहा है। सामान निकालने के लिए जगह भी नहीं दी जा रही। उनका कहना है कि पूरी पूंजी घर में लग गई। तीन बच्चे हैं। अब उनकी शादी करनी है। हम 20 साल पीछे चले गए हैं। वहीं, ग्रामीण अभियंत्रण विभाग की तरफ से इंटर लॉकिंग के शिलान्यास का बोर्ड भी लगा हुआ है। इसके साथ ही कई लोग घर टूटने से गुस्से में हैं। वह अभद्रता भी कर रहे।

अकबरनगर में अवैध मकान तोड़े जा रहे हैं।
अकबरनगर में अवैध मकान तोड़े जा रहे हैं।

छह सौ से अधिक को घर का आवंटन
अकबर नगर में 600 से अधिक को घर का आवंटन किया गया है। इसके लिए कुल 1679 परिवार अभी तक चयनित किए गए हैं। इसके लिए 1818 से अधिक आवेदन आ चुके हैं। इसमें कुल मकान और दुकान की संख्या 1240 है। 1139 आवासीय मकान हैं, जबकि 101 व्यवसायिक कॉम्प्लेक्स हैं।

4.79 लाख रूपए का मिल रहा घर, 73 करोड़पति
विस्थापित हो रहे लोगों को सरकार की तरफ से घर दिया जा रहा है। इसके लिए पांच हजार रूपए प्रति महीने की दर से किस्त पर लिए जाएंगे। वहीं, अकबरनगर में 73 करोड़पति भू माफिया भी सामने आए हैं, जिन्होंने जमीन पर कब्जा किया था। इसी से 101 कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स का निर्माण हुआ और इन्हीं के दम पर यह बस्ती बसी।

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