New Delhi: 22 साल में पहली बार पूर्ण बहुमत नही दिला पाए मोदी‚ ले डूबा अहंकार

2019 और 2024 के चुनाव में उन्होने रोजगार और महंगाई पर बात तक नही की। 2019 में तो बालाकोट एयर स्ट्राइक ने इन मुद्दो से जनता ध्यान हटा दिया और मोदी सत्ता तक पहुंच गए। लेकिन 2024 में ऐसा कोई संयोग नही बन सका।

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New Delhi: नरेन्द्र मोदी पहली बार साल 2002 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने तो पूर्ण बहुमत से सत्ता में आए।  2002 से 2012 के बीच गुजरात में 3 विधानसभा चुनाव हुए‚ तीनो ही चुनाव में मोदी ने पूर्ण बहुमत हासिल किया और सरकार बनाई। राज्य से लेकर देश की गद्दी तक उन्होने पूर्ण बहुमत का सिलसिला जारी रखा। 2014 में जब वो पहली बार प्रधानमंत्री बने तो देश में भी पूर्ण बहुमत से सत्ता में आए। 2019 में भी उन्हाेने पूर्ण बहुत हासिल करते हुए देश की सत्ता संभाली। लेकिन 2024 में वो ऐसा नही कर पाये‚ इसकी वजह मोदी का अहंकार भी रहा है।

दरअसल मोदी यह मानने लगे थे कि पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आने के लिए उनका नाम ही काफी है‚ उन्हे किसी और जरूरत नही है।  यही वजह रही कि पहली बार नरेंद्र मोदी अपनी पार्टी को बहुमत नहीं दिला सके। मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनकर जवाहर लाल नेहरू के रिकॉर्ड की बराबरी तो कर सकते हैं, लेकिन लगातार तीन लोकसभा चुनाव में बहुमत दिलाने के नेहरू के रिकॉर्ड से चूक गए हैं।

22 साल में नरेन्द्र मोदी के लिए यह पहली बार है जब वो सत्ता को लेकर हताश हुए हैं। इससे पहले नरेन्द्र मोदी खुद को जीत की गारंटी मानते थे‚ उनके अंदर अहंकार की भावना लगातार बढ़ रही थी। उन्होने बीजेपी के सभी वरिष्ठ नेताओ को किनारे करते हुए खुद को ही प्रमुख बना लिया था। वो खुद को परमात्मा का अवतार तक कहने लगे थे। पूरे चुनाव में उन्होने कई बार इस तरह के बयान दिये जिनसे जनता का कोई सरोकार नही थी। उन्होने महात्मा गांधी की पहचान पर भी सवाल उठाए जिसकी काफी आलोचना हुई‚ लेकिन मोदी पर कोई फर्क नही पड़ा।

पोस्टरों में भी केवल मोदी

चुनाव पोस्टरो में सभी राजनीतिक पार्टिया अपने संस्थापको और आदर्श नेताओ के साथ-साथ क्षेत्रिय नेताओ के फोटो लगाती हैं ताकि जनता को पार्टी की पहचान और इतिहास याद रहे‚ लेकिन नरेन्द्र मोदी ने यहां भी सबको किनारे कर दिया‚ पूरे चुनाव अभियान में सभी पोस्टरो पर केवल मोदी का चेहरा ही नजर आया। भारतीय जनता पार्टी जिन नेताओ को आपना आर्दश मानती हैं‚ उनकी फोटो भी चुनाव कैंपने में कही नजर नही आयी। पूरा कैंपेन मोदी के चेहरे पर ही चलता रहा। अटल बिहारी वाजपेई और आडवाणी से लेकर संघ प्रमुखो के चेहरे भी पोस्टरो से गायब कर दिये गए।

संघ से भी किया किनारे

सफलता के कर्म में मोदी इतने अहं से भरते चले गए कि उन्होने संघ को भी भाव देना बंद कर दिया। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने तो प्रेस के सामने यहां तक कह दिया कि अब बीजेपी का इनता विस्तार हो चला है कि उसे संघ की जरूरत नही है। एक समय इसी संघ के भरोसे बीजेपी चलती थी और संघ भी बीजेपी को आगे बढ़ाने के लिए काम करता था। नड्डा के इस बयान पर स्वयंसेवक संघ ने कोई प्रतिक्रिया तो नही दी लेकिन कही ना कहीं खुद को चुनाव से दूर कर लिया‚ जिसका खामियाजा मोदी और बीजेपी को भुगतना पड़ा।

रोजगार और महंगाई पर कोई बात नही

देश की आम जनता के लिए किसी भी मुद्दे से ज्यादा रोजगार और महंगाई होती है। ये दोनो ही मुद्दे ऐसे हैं जिनसे आम आदमी सीधे तौर पर प्रभावित होता है। नरेन्द्र मोदी जब सत्ता में आए तो उन्होने आम आमदी की इसी नब्ज को पकड़ते हुए जोरो से यह मुद्दा उठाया और लोगो को अच्छे दिनो के सपने दिखाए। लेकिन सत्ता संभालते ही मोदी ने इन मुद्दो से ध्यान हटा लिया। वो केवल राष्ट्रीय मुद्दो और धर्म की राजनीति में लगे रहे। 2019 और 2024 के चुनाव में उन्होने रोजगार और महंगाई पर बात तक नही की। 2019 में तो बालाकोट एयर स्ट्राइक ने इन मुद्दो से जनता ध्यान हटा दिया और मोदी सत्ता तक पहुंच गए। लेकिन 2024 में ऐसा कोई संयोग नही बन सका‚ इस बार मोदी राम मंदिर का फायदा लेना चाहते थे लेकिन ध्यान भटकाने के लिए यह राष्ट्रीय मुद्दा नही बन पाया। चुनाव के अंमित समय मोदी खुलकर हिन्दू-मुसलमान की राजनीति पर भी उतर आए लेकिन जनता ने ज्यादा त्वोज्जो नही दी। परिणाम यह रहा है कि 22 साल में मोदी पूर्ण से चूक गए।

 

 

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