Sunil Bendre
107 साल पहले रेल प्रशासन को लिखे एक खत ने बदल दी थी रेल के हर डिब्बे की व्यवस्था
ओखिलचंद सेन शायद ही कोई इस नाम से वाकिफ हो,आदमी को ट्रेनों में शौचालय का रोज इस्तेमाल करने वाले लाखों में से ज्यादा लोग नहीं जानते होंगे और आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि रेल डिब्बों में शौचालय का निर्माण इन्हीं की चिट्ठी पर हुआ था। इनकी ये चिट्ठी नई दिल्ली स्थित नेशनल रेल म्यूजियम में वर्षों तक रखी हुई थी। म्यूजियम में आने वाले लोग इसे पढ़ कर ये समझ जाते थे कि उस समय यात्रियों की शिकायत पर रेल प्रशासन यात्रियों के प्रति कितना गंभीर रहता था।
दरअसल, उस वक्त रेल प्रशासन ने ओखिल बाबू के पत्र को शिकायत के बदले सुझाव के तौर पर लिया था।
अखिल बाबू सेन ने साहेबगंज (अब झारखंड में) रेलवे स्टेशन के मैनेजर को कड़ी चिट्ठी लिख दी। जिसमें उन्होंने अपनी व्यथा का पूरा वर्णन किया। बताया कि कटहल खाने के चलते उनका पेट फूल गया था। ओखिल चंद्र सेन एक दिन सामान्य यात्री की तरह पैसेंजर ट्रेन पर सवार हुए। अहमदपुर स्टेशन पर उतरे तो शौच महसूस हुई। ट्रेन में शौचालय नहीं था। सो, लोटा लेकर प्लेटफार्म किनारे बैठ गए। अभी फारिग भी नहीं हुए थे कि गार्ड ने सीटी बजा दी।
ट्रेन चल पड़ी। बेचारे एक हाथ में लोटा और दूसरे हाथ से धोती पकड़े दौड़ पड़े। उन्होंने शोर मचा कर ट्रेन के गार्ड को ट्रेन रोकने के लिए भी कहा लेकिन गार्ड ने देखने के बाद भी ट्रेन को नहीं रुकवाया तथा ट्रेन निकल गई। ट्रेन छूटने से अधिक नाराजगी इस बात को लेकर थी कि भागदौड़ में प्लेटफार्म पर गिरे तो महिला-पुरुष यात्रियों के सामने बेपर्द हो गए। जिसमें उन्होंने अपने आप को काफी बेइज्जत महसूस किया और रेल प्रशासन पर नाराजगी जाहिर करते हुए रेल प्रशासन को एक पत्र लिखा।
पत्र में ओखिल बाबू ने सिर्फ यह इच्छा जाहिर की थी कि कोई यात्री शौच को जाता है तो गार्ड को चाहिए कि वह कुछ इंतजार करे। और उन्होंने मांग की कि जनहित में गार्ड पर भारी जुर्माना लगाया जाए। साथ में धमकी भी दी थी कि जुर्माना नहीं करने पर अखबारों के लिए बड़ी रिपोर्ट बनाएंगे।
पत्र के अंत में लिखा-आपका विश्वासी सेवक, ओखिल चंद सेन। ओखिल चंद की इसी शिकायत को गंभीरता से लेते हुए रेलवे प्रशासन ने ट्रेन के हर डिब्बे में शौचालय का निर्माण कराने की ठान ली। जिसके बाद आने वाले कुछ वर्षों में ट्रेन के हर डिब्बे में शौचालय का निर्माण कराया गया।