पाकिस्तान की गलियों में एक नाम सुनकर सन्नाटा छा जाता है। यह नाम एक सीरियल किलर का है जिसने एक या दो नहीं बल्कि 100 बच्चों को बेरहमी से मार डाला था। ‘जावेद इकबाल’ (Javed iqbal) नाम के इस सीरियल किलर की पागलपन की हद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने 100 बच्चों को मारने की कसम खाई थी और अपने मकसद में कामयाब होने के बाद उसने आत्मसमर्पण कर दिया था।
जावेद इकबाल की कहानी किसी आम हत्यारे की कहानी नहीं है, जो इतिहास के पन्नों में आसानी से दब जाए। पाकिस्तान के किसी भी कोने में जब भी हैवानियत अपना सिर उठाती है तो लोगों की जुबान पर ‘जावेद इकलाब’ का नाम अपने आप आ जाता है। सवाल यह है कि आज इस हत्यारे की बात क्यों की जा रही है? दरअसल, 16 मार्च की तारीख जावेद इकलाब की जिंदगी का सबसे काला दिन था। आज आपको बताएंगे पाकिस्तान के सबसे खूंखार सीरियल किलर के सफर की कहानी, ’16 मार्च ‘का इतिहास और जावेद इकबाल का अंत।
अखबार के संपादक को मिला एक पत्र
90 का दशक अपने अंतिम चरण में था। कुछ वर्षों के बाद एक नया दशक और एक नई सदी शुरू होने वाली थी। वर्ष 1999 में जब लाहौर के एक उर्दू अखबार के संपादक को एक पत्र मिला। पत्र में लिखा गया था, ‘मैं जावेद इकबाल, मैंने 100 बच्चों की हत्या की है और उनके शवों को तेजाब से गला दिया है। इनमें से ज्यादातर बच्चे अपने घरों से भाग गए या अनाथ थे। ‘पत्र में उस स्थान का भी विवरण है जहां यह’ जघन्य ‘अपराध किया गया था।
इस पत्र को पढ़ने के बाद, अखबार का संपादक सचेत हो गया। उन्होंने अपने एक पत्रकार को पत्र में उल्लिखित स्थान पर भेजा। पत्रकार को खून की थैली और वहां एक बैग में बच्चों के जूते और कपड़े मिले। पत्रकार को मौके पर एक डायरी भी मिली, जिसमें उन बच्चों के बारे में लिखा था, जिन्हें जावेद ने अपना ‘शिकार’ बनाया था। जावेद ने लाहौर पुलिस को भी इसी तरह का पत्र भेजा था, लेकिन पुलिस ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
जावेद इकबाल इंटरव्यू के लिए पहुंचे
क्राइम सीन देख रहे पत्रकार की नजर दो बड़े कंटेनर पर पड़ी। इनमें हाइड्रोक्लोरिक एसिड और बच्चों की हड्डियों के कंकाल मिले। पत्रकार ने इसकी जानकारी संपादक को दी, जिसके बाद पुलिस को सूचित किया गया और दुनिया को जावेद के बारे में पता चला। पुलिस घटनास्थल पर पहुंची और सबूत इकट्ठा करना शुरू कर दिया जब पुलिस को एक डायरी मिली जिसमें कहा गया था कि मैंने कुछ लाशों को सबूत के रूप में छोड़ दिया था। जावेद ने लिखा कि मैं रावी नदी में कूदकर आत्महत्या करने जा रहा हूं। इसे पढ़ने के बाद पुलिस ने जावेद की खोजबीन शुरू की। कहा जाता है कि यह पाकिस्तान का सबसे बड़ा तलाशी अभियान था।
उर्दू अखबार के दफ्तर पहुंच किया आत्मसमर्पण
पुलिस जांच में जुटी और जावेद के दो दोस्तों को हिरासत में ले लिया और पूछताछ शुरू कर दी। इनमें से एक दोस्त ने पूछताछ के दौरान आत्महत्या कर ली। पुलिस इस पहेली के अंत की तलाश में थी कि जावेद उसी उर्दू अखबार के कार्यालय में पहुंचा और इंटरव्यू देने के बारे में बताया। जावेद ने संपादक से कहा कि वह आत्मसमर्पण करने आया हैं। आखिरकार, जावेद इकबाल का साक्षात्कार लिया गया, जिसके अंत में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
हत्या का कारण पुलिस को समझाया
पूछताछ के दौरान जावेद ने हत्याओं की वजह बताई। अपने ‘कारण’ को ‘भावुक कहानी’ करार देते हुए जावेद ने कहा कि 20 साल की उम्र में उसे बलात्कार के झूठे आरोपों के आधार पर जेल भेज दिया गया था। उनकी माँ जेल में उनसे मिलने आती थीं और अपने बेटे की रिहाई के लिए दुआ करती थीं। जावेद ने बताया कि बेटे की रिहाई का इंतज़ार करते हुए आखिरकार एक दिन आंसू बहाते हुए उसकी माँ की मृत्यु हो गई। इसके बाद, उसने कसम खाई कि वह 100 बच्चों की माँओ को रोने के लिए मजबूर करेगा। तभी से उसने मासूम बच्चों को मारना शुरू कर दिया।
दुष्कर्म के बाद गला घोंटकर हत्या के बाद लाश के टुकड़े कर तेज़ाब में गला देता था
पुलिस के सामने अपने अपराध की पुष्टि करते हुए, जावेद ने कहा कि वह पहले बच्चों को लाहौर के शादबाग में अपने घर ले जाता था, जहां वह उनके साथ बलात्कार करता और फिर लोहे की चेन से गला घोंटकर उनकी हत्या कर देता। जिसके बाद जावेद उन बच्चों की लाश को छोटे टुकड़ों में काटकर उन्हें एसिड में गला देता था। वह लाश के बचे हुए अवशेषों को नदी में फेंक देता था। जावेद ने पुलिस के सामने अपना अपराध कबूल कर लिया और आखिरकार अदालत ने उसे 16 मार्च 2000 को मौत की सजा सुनाई।
कोर्ट के फैसले पर हुई दुनिया भर में आलोचना, बदलना पड़ा फैसला
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि जिस तरह से जावेद ने 100 बच्चों की बेरहमी से हत्या की, उसी तरह उसका 100 बार गला घोंटा जाए, उसकी लाश के 100 टुकड़े काटे जाने चाहिए और उसे तेजाब में डुबोया जाए। अदालत के इस फैसले का दुनिया भर में विरोध किया गया और आखिरकार अदालत को अपना फैसला बदलना पड़ा और जावेद को मौत की सजा सुनाई गई।
यहीं खत्म नहीं हुई जावेद की कहानी
8 अक्टूबर 2001 की सुबह कोट लखपत जेल में, जेल प्रशासन ने दो शवों को छत के कुंदे पर लटका पाया। ये शव जावेद इकबाल और उसके साथियों के थे। दोनों के हाथ और पैर पूरी तरह से नीले थे। कहा जाता है कि दोनों की जेल में हत्या कर दी गई थी। उन्हें जहर दिया गया और एक चादर की मदद से छत की सलाखों से लटका दिया गया। हालांकि जेल प्रशासन ने इसे आत्महत्या करार दिया, लेकिन इस मामले में कई जेल कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया।