मनोज कुमार
इंसान के घर जब बच्चा पैदा होता है तो मां बाप की दुनिया ही बदल जाती है, बच्चो की अच्छी परवरिश के लिए मां-बाप पूरे जीवन संघर्ष करते है जी जान से मेहनत करते हैं। उनको बोलना सिखाते हैं, ऊंगली पकड़कर चलना सिखाते हैं। पढ़ा लिखा कर उसको एक काबिल इंसान बनाते हैं। इतना सब कुछ करने के बाद भी उस काबिल इंसान को बुढ़ापे में अपने मां-बाप बोझ लगने लगते हैं। दिन रात मेहनत कर बनाए गए आशियाने से ही अपने लाचार और बेसहारा मां-बाप को वृद्ध आश्रम में फेंक आते हैं।
हिंदू धर्म के अनुसार पितृ पक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध और तर्पण करते हैं। मान्यता है यदि विधि-विधान से पितरों का श्राद्ध, तर्पण न किया जाए तो उनकी मुक्ति नहीं होती। लेकिन उन मां बाप को मुक्ति कैसे मिले जिनकी औलाद जीते जी उनको वृद्धाश्रम में छोड़ गए। यहाँ तक तो वह अपनी किस्मत मानकर सह लेते हैं। लेकिन कुछ लोगो को पितृ पक्ष में पुरखों का श्राद्ध करने के लिए इन बुजुर्गों की याद आई तो वृद्धाश्रम से कोई अपनी मां को ले गया तो कोई पिता को। लेकिन श्राद्ध बीतने के साथ ही उनकी औलाद उनको फिर वहीं छोड़ गई।
आगरा के रामलाल वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्गों मुन्नी देवी, हरीशंकर, नीलम गुप्ता, शारदा देवी आदि ने अपना दर्द साझा करते हुए बताया कि अपने घर जाने की बात सुनकर ही उनके सभी दुखों का अंत हो गया और अपने साथ किए व्यवहार को भी क्षण भर में ही भूल गए। आश्रम में रह रही 62 वर्षीय एकता का कहना है कि चार दिन पहले बेटा मुझे लेने के लिए आया। वह चाहता था कि पिता के श्राद्ध के दिन मैं घर में मौजूद रहूं। घर पहुंचकर सुकून मिला और मैं बहुत खुश थी। लेकिन श्राद्ध के बाद वह मुझे फिर आश्रम छोड़ गया।
75 वर्षीय पुष्पलता ने बताया कि उनके तीन बेटे हैं। पति की मौत के बाद बेटे अपने साथ रखना नहीं चाहते हैं। पितृ पक्ष में पिता का श्राद्ध करने के लिए लेने आए।पुरानी सारी बात भूलकर मैं घर गई लेकिन श्राद्ध के बाद फिर यहीं छोड़ गए। पिता का श्राद्ध बेटों को याद था लेकिन उन्होंने अपनी मां को जीते जी मार दिया। अब पहले से ज्यादा घर की याद आ रही है। 73 वर्षीय अनिल कुमार ने बताया कि वह आश्रम में पिछले छह महीने से रह रहे हैं। घरवालों को मेरी याद नहीं आई। श्राद्ध पक्ष में बेटे चाहते थे कि मैं घर पर रहूं इसलिए घर ले गए। पुरखों के श्राद्ध होने के बाद बेटों ने फिर मुझे आश्रम में जाने के लिए कह दिया। अब पहले से ज्यादा दुःख महसूस कर रहा हूं।
आश्रम के अध्यक्ष शिव प्रसाद शर्मा ने बताया कि श्राद्ध बीतने के साथ ही उनकी औलाद उनको फिर वहीं छोड़ गई जिससे यह सभी मां बाप फिर से मायूस हो गए। उनकी आंखों में चमक की जगह अब आंसू हैं। उन्होंने बताया कि यहां आने वाले बुजुर्गों में कुछ ऐसे हैं जो अपनों के व्यवहार से परेशान होकर यहां आए हैं। वहीं कुछ बुजुर्गो को उनके बेटे ही यहां छोड़कर गए हैं। यह केवल आगरा के वृद्धाश्रम की कहानी नहीं है। यह लगभग सभी वृद्धाश्रम की कहानी है। जब मां बाप की जरूरत थी तो उनका इस्तेमाल किया। जैसे ही वो बेचारे मजबूर और लाचार हुए तो उनकी ही औलाद उनको फेंक गई आश्रमों में। श्रवण कुमार के इस देश में ऐसा आखिर क्यों……?।